Nakul   (Nakul)
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Joined 29 December 2019


Joined 29 December 2019
24 APR AT 16:27

मेरी ख़मोशी के कुछ तो सबब रहे होंगे

ये हर्फ़ यूॅं ही नहीं ज़ेर-ए-लब रहे होंगे

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23 APR AT 18:21

लकीर खींची वरक़ पे वतन अलग हो गये
कि दीन के लिए हम फ़ितरतन अलग हो गये

नहीं रही कभी पहले सी बात रिश्ते में
अलग-अलग हुए दोनों तो मन अलग हो गये

कुछ एक लोग थे घर के कुछ एक बाहरी भी
हमारा लूट के सब, राहज़न अलग हो गये

चनाब , सिंधु से रावी या व्यास से झेलम
सियासी झगड़े में भाई-बहन अलग हो गये

वही ज़बान वो ही ज़ाइक़ा है लोग वही
तो ऐसा क्या हुआ जो हम-सुख़न अलग हो गये

तो क्या हुआ जो तिरे फूलों पे नहीं रहा हक़
ये ख़ुशबू सांझी है बेशक चमन अलग हो गये

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18 APR AT 21:25

मालूम है कि हम में रिफ़ाक़त नहीं रही
मुझको तिरी तुझे मिरी आदत नहीं रही

ये भी नहीं कि मुझ से हिमायत नहीं रही
बस बात बात पे वो हिदायत नहीं रही

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17 APR AT 21:42

झूठ पे सच की पालिश नहीं कर रहा
इसलिए हाथ लर्ज़िश नहीं कर रहा

बूंद से ही उतरने लगा उसका रंग
शुक़्र है रब का बारिश नहीं कर रहा

इश्क़ में रख फ़क़ीरों के जैसा उसूल
रुक न गर वो गुज़ारिश नहीं कर रहा

पूछता है वो भी हाल रसमन मिरा
मैं भी उसकी परस्तिश नहीं कर रहा

वो किसी और सूरत का है आइना
तू समझने की कोशिश नहीं कर रहा

ग़ज़लों में अब से लिक्खूगाॅं मैं फ़लसफ़े
जा मैं तेरी सताइश नहीं कर रहा

लौट के आया हूॅं जब से शमशान से
तब से दिल कोई ख़्वाहिश नहीं कर रहा

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13 APR AT 1:23

वो रिहा हो गया मुझ को भी फ़राग़त अता हो

तोड़ दूं मैं भी क़फ़स इतनी सी ताकत अता हो

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11 APR AT 23:34

कोई धुन तारी नहीं कोई सनक बाकी नहीं
अब फ़लक को नाप आने की हुमक बाकी नहीं

अब नहीं वो तिशनगी जिस को समंदर चाहिए
मुझ में अब कुछ कर गुजरने की ललक बाकी नहीं

जाते जाते साथ में वो रंग सारे ले गया
जिंदगी में मेरे अब कोई धनक बाकी नहीं

एक कमरें में सिमटता जा रहा हूॅं आज कल
इस जहाॅं में मेरी ख़ातिर अब चमक बाकी नहीं

बोलने जो बैठूॅं कुछ भी तो गला भर जाता है
जाने क्यूॅं आवाज़ में मेरी खनक बाकी नहीं

उठ जा अब तैयार हो कपड़े बदल तू सब से मिल
चल नकुल के इस ज़मीं पे तेरा हक़ बाकी नहीं

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10 APR AT 19:16

वादियों का हो सुकूत और आबशार हो
चारों ओर बर्फ़ से ढके हुए चनार हो

इक शिकारा एक झील इक तू और एक मैं
बस हो हम ही चार और प्यार प्यार प्यार हो

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31 MAR AT 19:12

कभी कभी सोचनें जो बैठूॅं तो हैरानी होती है
क्यूॅं आज तक भी तिरे ज़िक्र से परेशानी होती है

अब भी मिन्नतें करता है कोई तुम्हारी रुकने को?
जो जाते वक्त चूमते हो , किसकी पेशानी होती है

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19 MAR AT 22:45

महज़ तकल्लुफ़ है निबाह का और कुछ नहीं

मैं आख़िरी काॅंटा हूॅं राह का और कुछ नहीं

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17 MAR AT 17:04

ये नहीं है कि हम को शिकायत नहीं..
बस जिरह की हमारे रिवायत नहीं..

तू जो दुत्कारे फिर भी तिरे दर रहे..
माना बेशर्म हैं पर निहायत नहीं..

इतना मुश्किल नहीं पढ़ना चहरा मिरा..
आदमी हूॅं मैं अरबी की आयत नहीं..

बेवफ़ा और कम-ज़र्फ़ से सावधान..
क्यूॅं तिरे गेट पर ये हिदायत नहीं..

जानता हूॅं कि रब की इनायत है माॅं..
मुझ पे रब की यही इक इनायत नहीं..

मिलना चाहोगे तो मिल ही लोगे मुझे..
यार हरियाणा कोई विलायत नही..

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