nakul Kumar   (नकुल कुमार)
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Joined 1 February 2024


Joined 1 February 2024
1 MAY AT 7:28

ओढ़ता हूँ जख़्म अपने आप की ख़ातिर
देखता हूँ फिर कि ज्यादा खिलते जाता हूँ

मन नहीं करता कि इनसे बात भी कर लूँ
मिल नहीं पाता कि फिर भी मिलते जाता हूँ

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30 APR AT 8:25

घर में घुसता हूँ तो लगता है कि रेगिस्तान है
मेरे इक कमरे में सारे शहर भर की गर्द है

ऐसे कुछ तोहफ़े मिले मेरी मुहब्बत में मुझे
दर्द अपने दे गया है मेरा जो हमदर्द है

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29 APR AT 1:57

रौशनी मेरे लिए कम कर सको तो कीजिये
इस अँधेरी रात को सूरज निगलने दीजिये

दो जहाँ की ज़िंदगी जीकर चले हैं दो घड़ी
मरते मरते फिर मुझे कुछ और मरने दीजिये

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27 APR AT 11:36

ज़िंदगी तुझे मैं मौत की सौतन बनाऊँगा
ब्याहूँगा तुझे लेकिन इश्क़ उससे लड़ाऊँगा

करूँगा बेवफाई भी मिले मौका मुझे जब भी
कि तू बिस्तर सजायेगी संग मैं उसको सुलाऊँगा

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26 APR AT 21:34

ओढ़ता हूँ ज़ख़्म अपने आप की ख़ातिर
देखता हूँ फिर कि ज्यादा खिलते जाता हूँ

मन नहीं करता कि इनसे बात भी कर लूँ
मिल नहीं पाता कि फिर भी मिलते जाता हूँ

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26 APR AT 19:22

क्या कहूँ, कैसे कहूँ बेहाल हूँ इस हाल में
बेसुधी में गुम हूँ तेरी यादों के जंजाल में

लोग सुनकर वाह-वाही करते हैं हर बार ही
रोज ही रोता हूँ अब तो मैं किसी सुर ताल में

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24 APR AT 16:11


कोशिशें करते कभी मर जायें हम खुद में
मर नहीं पाते तो खुद को मारते जाते

घूमते जंगल में अपनी मौत की खातिर
ज़िंदगी मिलती तो फिर दामन छुड़ा जाते

धूप को धोखे में रख रहते अँधेरों में
ज्यादा कुछ होता तो खुद को फूँकते जाते

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24 APR AT 16:05


मिलना हो ख़ुद से तो तेरे शहर तक जाते
आज या फिर कल नहीं पर एक दिन जाते

घूमना घर-घर कि फिर घर खोजना ख़ुद में
अपने घर होते तो फिर हम घर चले जाते

कोशिशें करते कभी मर जायें हम ख़ुद में
मर नहीं पाते तो ख़ुद को मारते जाते

घूमते जंगल में अपनी मौत की ख़ातिर
ज़िंदगी मिलती तो फिर दामन छुड़ा जाते

तुझसे मिलने को कभी आते तेरी बस्ती
तू नहीं मिलता तो फिर शमशान तक जाते

धूप को धोखे में रख रहते अँधेरों में
ज्यादा कुछ होता तो ख़ुद को फूँकते जाते

आते लेकर के तुझे तेरे ख़्यालों में
मर चुका मुझमें तू ये कह कर चले जाते

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22 APR AT 8:15

ये मुहब्बत की किताबें कौन यूँ कब तक पढ़े
कौन मारे रोज ही इक बात पे अपना ही मन

क्या कहूँ, कैसे कहूँ, किससे कहूँ ऐ दिल तेरी
कौन तेरे दर्द को कैसे करे कब तक सहन

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21 APR AT 22:40

मारता हूँ दफ्न भी करता हूँ सब यादें
दिल मेरा हो या कि क़ब्रिस्तान हो जैसे

काम लेते हैं सभी अपने तरीके से
दिल मेरा दिल ना हुआ सामान हो जैसे

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