दुःख का अधिकार नहीं उस मां को
जवान इकलौता छोड़ गया दो मासूमों को
बहू बुखार से तड़प रही बच्चे भूख से
अन्त्योस्टि में भेंट चढ़ गया
जो कुछ था उसके पल्ले से
गला रूंध गया आॅ॑सू सूख गए
घर में नहीं एक पाई ज़हर भी कैसे खाएं
घर से निकली तीनों के प्राण बचाने
सर चकरा गया सुन समाज के ताने
हाय दुर्भाग्य न सुहाग न औलाद
फिर भी नारी है फौलाद
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2 NOV 2019 AT 19:06