ये जो मुझे पा कर बहुत इतराती है,
इसे मेरी जां, 'वो' कहां नज़र आती है,
इक अनाड़ी को प्यार करना सिखलाया जिसने,
वहीं प्यार, अब 'वो' किसी अनाड़ी से चाहती है।।-
कृतं मे दक्षिणे हस्ते जयो में सव्य आहितः।
ग़म पर अपने हम रोते,
है जिम्मेदारी कांधों पर अभी,
चैन से नहीं तो हम सोते।।-
मशवरे सबके मैं याद रखता हूँ,
हर लफ्ज़ का हिसाब रखता हूँ,
भुल भी जाऊँ खंजर मैं गैरो के,
लहजे अपनों के मैं याद रखता हूँ।-
खुद को महबूब के लिए सजा रखा है,
मैंने खुशियों को गोदी में उठा रखा है ।।-
सांसें परेशान करती है,
झूठों से भरी इस दुनिया में,
खुद से अनजान करती है।।-
मैं तुमसे मिलने आता हूँ, तो पागल सा हो जाता हूँ,
'मैं तेरा हूँ' जो कहना चाहूँ, 'तू मेरी है' कह जाता हूँ।।-
मन में ख्वाहिशें भी मैं हजार रखता हूँ,
दुश्मनों को भी मैं अपना यार रखता हूँ,
अब मिलाता हूँ हाथ रिवायत में जब उनसे,
कुछ हथियार भी मैं अपने साथ रखता हूँ।।-
जुबान की तल्खी मेरी, नमक से खारी है,
प्यार से सुन रहा हूं, क्युंकी घर की जिम्मेदारी है,
अभी शांत हूं तो, मुझे मुर्दा समझ रहे है वो,
वो अजी... मेरा जूता जिनकी, औकात से भारी है।।-
अग्नि में झुलसना पड़ता है,
कुछ कर गुजरने की इस चाहत में,
मुझे खुद को परखना पड़ता है।।-
रात है कान्हा की, और कान्हा का है दिन,
इक पल भी ना गुजरे मेरा, राधा तेरे बिन ।।-