दोस्त = दो + हस्त
गिराने पर, मुझे उठाने वाले दो हाथ
गलत राहों पर, जाने से रोकने वाले दो हाथ
हर पल, मुझे सही राह दिखाने वाले दो हाथ
मेरे लिए, दुआओं में उठने वाले दो हाथ
वो दो हाथ..मेरे दोस्त के ही है..!!
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✨ I just write what comes directly from my soul....i.e. Nafs-E-Nand... read more
नफरत की राह पे भटक गया हूं
मोहब्बत के मदरसे में दाखिला चाहिए
ढाई आखर प्रेम की तालीम दे जो
वो कबीर जैसे गुरु में मौला चाहिए-
ऐतबार था मुझे मेरी बंदगी पर
की दरगाह पर,
मखमल की चादर चढ़ा के आया हूं
ठोकर लगी तो इल्म हुआ
अलाह को कपड़े की चादर नहीं
गुरूर का लिहाफ़ सौंपना था-
परीक्षा में असफल होते होते
बस हार मानने ही वाला था
की बाबा का फोन आया
और बोले - " कैसे हैं इंजिनियर बाबू..?"
आंखों में आसूं थे ,
और दिल में नया हौसला
आंसू पोछे झट से अपने
सपनो को समेटकर जिगर में
मैं फिर लग गया तैयारी में..-
चलो अब विदा लेते है यादों से तेरी,और अलविदा कहते हैं तुम्हें
कहीं और लगाकर दिल ये अपना,दिल ना तोड़ना फिर किसी का यूं
बस यहीं हिदायत देते हैं तुम्हें
मोहब्बत तो खुदा की इबादत है,इसकी कभी ना करना, फिर रुसवाई
जो रुलाओगे किसी पाक इश्क़ करने वाले को,तो देखोगे तुम भी खुदा की खुदाई
अफ़सोस ना करना तुम ज़रा भी,कहां चली है किसी की किस्मत के आगे
कभी ज़माना आता है इश्क़ के आड़े,कभी कोई अपना तोड़े विश्वास के धागे
छोड़ पुरानी बातें अब,मैं तो चली अपना कल बनाने
कड़वे एहसासों से आज़ाद होकर,चली अब ज़िन्दगी का मीठा गीत गुनगुनाने
हालंकि,थोड़ा सा बचा हैं मुझमें तू अभी भी,
पर जल्द ही मैं फिर से, मैं बन जाऊंगी
हां मैं तुझे, एक दिन यकीनन भूल जाऊंगी-
THANKS A MILLION...
"NADEEM JI"
&
"KHEMENDRA JI"
FOR HIGHLIGHTING MY QUOTE..
AND..
ALWAYS APPRECIATING...
MY WRITE UPS...
NO WORDS...FOR
EXPRESSING MY GRATITUDE...
🥰🥰
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इक्तेफाक से जो, मिला तू अगर किसी डगर
रुक कर तेरा शुक्रिया, जरूर अदा करेंगे
ये जज़बा जो दौड़ा है मुझमें, ये तेरे फरेब ही देन हैं
शुक्रगुजार हम तेरे, बेशक़ सदा रहेंगे
जो मुश्किल में, कभी पाओ खुदको
खड़खड़ाना बेझिझक मेरा दरवाज़ा
सुख में भले नहीं, पर दुख में पाओगे पास हमें तुम
रब से करेंगे इल्तज़ा यहीं,की पूरी हो तुम्हारी, हर तकाज़ा
नफ़रत नहीं है तुमसे,
पर मोहब्बत के काबिल भी नहीं अब तुम
सफर का मेरे, तुम बस एक पड़ाव ही थे
ना साहिल हो तुम, मंज़िल भी नहीं अब तुम
ज़िन्दगी के कोरे पन्नों पर मैं
हसीन लम्हों से भरी, अपनी कहानी लिख जाऊंगी
हां मैं तुझे, एक दिन यकीनन भूल जाऊंगी-
उनके लिए जीते जी मर गए हम
और यादें उनकी, हमें हर पल मार रही थी
कहते थे जो, उनकी सांसें हैं हम
अब उन्हें हमारी, ज़रा भी दरकार नहीं थी
कुछ यूं लगा खंजर बेवफाई का सीने में
की इश्क़ से नफ़रत, और नफ़रत से इश्क़ हम करने लगे थे
दर्द की तो कोई इंतहा ही नहीं थी
की हर तकलीफ़ को, ख़ुशी ख़ुशी सहने लगे थे
पर ठाना है मैंने अब,
किसी और से नहीं, खुद से ही बेपनाह प्यार करना हैं
नहीं तकनी अब राह किसी और की
खुदको ही अपना जिगरी यार बनाना हैं
तेरे दिए हर ज़ख्म पर मरहम लगा,
मैं खिलखिलाते हुए गुलाब की महक बन जाऊंगी
हां मैं तुझे, एक दिन यकीनन भूल जाऊंगी-
प्यार मैंने भी किया था,प्यार तूने भी किया था
अंतर बस इतना था इश्क़ में अपने
मैंने सब कुछ अपना, तुझपे वार दिया था
और तूने मुझपे, बेवफाई का वार किया था
जितना माफ किया मैंने तुझे,
उसमे तो किसी के सात खून माफ हो जाते
वो तो दुआओं में मेरी, हर पल सलामती थी तेरी
वरना देखकर, मेरे पाक इश्क़ का अंजाम
खुदा के हर फैसले, तेरे खिलाफ़ हो जाते
ज़मीन खींची थी ना पैरो तले मेरी,
अब आसमां को अपना बसेरा बनाऊंगी
इतना ऊंचा उडूंगी, सपनों के पंख लगाकर,
की तुझे चाहकर भी, वापिस देख ना पाऊंगी
हैं कसम मुझे तेरी दगाबाजी की,
हां मैं तुझे, एक दिन यकीनन भूल जाऊंगी-