ये ज़ख्म नही ज़ाम है।
सामने वाले में बसा जो इंसान है।
हम भूल जाते है
इंसान के अंदर भी हैवान है।।
ये समझ के भी हम अंजान है।
मुकद्दर में लिखा हुआ कब्रिस्तान है।
दो पैरों पे चलने वाला इंसान।
चार कंधो का मेहमान है।।
समझते समझते गुजर जाती है जिंदगी।
हम में इंसान है की हैवान है।
मरने के बाद लोग कहते है, वो बड़ा अच्छा इंसान है।
जो गुजर गया यहां से, शायद यहां का मेहमान है।।
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