कभी गुरूर भी आए तुम्हरी मोहब्बत से, तो साथी। का साथ भी ना मांगू.
समुंदर में डूबी जान तो कभी मदत के लिए हात भी ना मांगू
कभी वफ़ाई ना मिली तुमसे तो बेवफ़ाई की कारण/दलील भी ना मांगू
कभी किए थे सजदे तुम्हारे लिए तो उसका हिसाब भी ना मांगू
कभी लगा हो इज्जाम हम पे तो कभी दलील भी ना मांगू
कभी तुम पे लिखी होगी कोई शायरी, तो उन शायरी ओंका दर्द भी ना मांगू
ये पाक एक तरफा मोहब्बत है, तुमसे मोहब्बत करने का इरादा भी ना मांगू
गुजर जायेंगे दिन मेरे तेरे ही याद में, नींद से जागने के लिए सुबह भी ना मांगू
कभी रखु इन रोजो को ऐसे भी तो उसका इफ्तार भी ना मांगू
गैर से पूछ नी पढ़ी तुम्हारी हालात, तो तुम्हारी भलाई की दुआ भी ना मांगू
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