नाज़ कुरैशी   (Naaz ki qalam ❣️)
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Joined 30 August 2020


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उसने किया था वादा आने का '
ना वो आया ना कोई संदेश आया

बैठी हूँ अब तक उसकी प्रतीक्षा में
खोल कर दिल किताब का..!!

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दिल हो दर्द में हँस कर क्या करोगे !!

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ज़रूरी है थोड़ी सी सावधानी भी '
मैं आईना हूँ , चुभ भी सकती हूँ !!

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मैंने तोड़ा है "उसका" ग़ुरूर इस तरह '
उसको दिल में रख कर दिल अपना तोड़ आए हैं..!!

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शब'भर रहता है वो साथ मेरे '
जैसे हो चाँद वो मेरी सियाह शब का..!!

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वो थी कारों में घूमने वाली
मैं बंदा सीधा सादा साइकिल वाला

इज़हार करता भी तो कैसे मुझे
क़ुबूल ना करता मेरा ससुर पैसे वाला

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मन बंजारा '
फिरे मारा मारा

मिल जाए कोई ठौर जो
फ़िर ना फिरे ये
बनके आवारा !

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नाजुक़ धागों से ये नाजुक़ रिश्ते '
कभी बनते कभी टूटते रिश्ते

चलो निभाते हैं हम आज फ़िर
ये रिश्ते
माँ की कोख से बनते ये नाजुक़ रिश्ते ..!!




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काट कर चक्कर वो जाने कितने और कहाँ कहाँ '
आया है लौटकर वापस वो फ़िर यहाँ !!

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🤍🌻🥀🖤



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