रूह का रूह से इक एहसास होता है .... दोस्त दूर रहकर भी अक्सर पास होते है.... मुश्किलों में जब साथ छोड़ देता है जमाना सारा .... इक परछाई दोस्त के रूप में हमेशा साथ होती है ....
हमेशा तो नहीं होगा ना ये साथ तुम्हारा मेरा कभी तो छूटेगा ही ना ये हाथ तुम्हरा मेरा तुम आसमां के चाँद से मैं जमीन का छोटा सा जुगनु हूँ कभी तो टकरायेगा ना ये अस्तित्व तुम्हरा मेरा मैं वीरान पड़ा इक गावँ हूँ तुम चमकता कोई शहर हो कभी तो जुदा होगा ही ना ये रास्ता तुम्हरा मेरा कभी तो छूटेगा ही ना ये साथ तुम्हरा मेरा हमेशा तो नहीं होगा ना ये साथ तुम्हरा मेरा
मैं कोशिश बहुत करती हूँ.... चेहरा धुंधला है आपका इन आंखो में मेरी फिर मैं इन आंखो से बहुत झगड़ती हूँ ... समझा के इस हारे मन को फिर एक और कोशिश मैं करती हूँ ... तस्वीर नहीं बनती मुझसे हाँ मैं कोशिश बहुत करती हूँ ....