लफ़्ज़ों के पुलिंदे छोड़ो तुम मुझको आज ख़ामोश रहने दो
ऑंखों की कहानी को समझ लो होठों को खामोश रहने दो-
जो ना समझ सके ,उसके लिए बात है...
जो समझ सके ,उसके लिए जज़्बात है.... read more
मुझे लगता है कि मेरा ख्याल रखने को तुम काफी हो
मैं खुदको क्या तोहफा दूं मेरे लिए बस तुम काफी हो-
सब तयशुदा वक़्त पे होना है
अचानक कुछ नहीं होता...
ये जो मुझसे बदज़न हुए हो
ऐसे तो कोई नहीं होता...
ख़फा़ बेशक़ रहो तुमको ये
इजाज़त भी दी है मैंने;
लेकिन किनारा ख़ुद से करो
ऐसे तो कोई नहीं होता...-
कैसी साज़िश कौ़म के नाम पे चल रही है...
एक रंजिश है जो दरमियान में पल रही है...
बड़े सलाहकार बताए ये क्या हैं? क्यूं है?
जो मज़हब की बू को बदबूदार कर रही है...
आखि़र कब तक ये राग अलापा जाएगा
कोई तो दाल है जो यहां नहीं गल रही है...
मुद्दा पेट का है दो वक़्ती रोटी का है बस
और मख़लूक़ तो बेमतलब ही मर रही है...-
मैं एक उमर को तजुर्बे की नज़र कर आई हूंँ
मेरे बाद जो पढ़े मुझको तो फिर उमर को जीकर गुज़ारे।-
किसी कि सुन रहे हैं,
किसी को सुना रहे हैं,
किसीको सुनना चाहते हैं।
लेकिन वो क्या रह गया....
जो कहना तुमको था शायद...?-