Myashuki   (Myashuki)
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Joined 24 July 2020


Joined 24 July 2020
9 FEB 2021 AT 20:02

कल बेबजह था
आज बेमतलब है
मगर है ....
और यही काफी है

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24 JAN 2021 AT 10:57

मैं हर रात इक अकेलेपन का
अहसास लिए सो जाता हूँ
तुम जो take care बोलते हो
मेरा take care न बोलना
इक वादा ही तो है
हर पल तेरे साथ तेरी परवाह करने का

For U

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23 JAN 2021 AT 7:11

महसूस करो उन रास्तो को
जिस सफर पर तुम चलते हो
गर जो मंजिल मिली तुमको

ये रास्ते बाहत याद आएंगे...

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11 NOV 2020 AT 16:50

आना तुम फिर एक बार....
बस
खुशी के लम्हात
बीत जाने दो...
कुछ वक्त बीत जाने दो

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28 OCT 2020 AT 19:42

वही पांव और इन सफेदपोश पांव में काला धागा
शरद मौसम में भीगकर
जो नमी आ जाती है ना
तुम्हारे चेहरे से साफ दिखती थी.....

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8 OCT 2020 AT 23:54

ये बारिश भी उस बारिश से कम नही है
न कम है अहसास इन बूंदों का
जब बिठा कर पर्वतो ने अपने आगोश में
उन बूंदों का उपहार दिया था
तेरे माथे से टपकती हर बूंद
जब तेरे गालो से होकर गुजरती थी
तेरे हांथो की कपकपाहट मेरे दिल मे
सिहरन पैदा कर दे रही थी
ये बारिश उस बारिश से जरा भी कम नही है
तुझे याद है वो नीम का पेड़
वो सायद नीम का पेड़ ही तो था
जिसके नीचे बैठकर हमने
बूंदों को पकड़ने की कोशिस की थी
देर तक बैठे थे हम दोनों उन बूंदों के साथ
नंगे तार पर बहती दो बूंदें
किस तरह देखते देखेते एक हो जाया करती थी
और गिर पड़ती थी हमारे हांथो की बनी अंजलि में
जिसे देखकर उन बूंदों ने हमे
हमारे होने का अहसास दिलाया था
ये बारिश उस बारिश से जरा भी कम नही है
न कम है अहसास इन बूंदों का ......

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21 SEP 2020 AT 18:37

चलो आओ सीमाओँ को तोड़ते है
और लगाते हैं
दो पैग पर्वतों के साथ
#lockdown thoughts

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16 SEP 2020 AT 20:50

बता नही सके तुम
की तुम आज भी मेरे शरद हाथो को पकड़कर
मुझे रोक लेना चाहते थे
तुम चाहते थे मुझे
कसकर हग करना
और हर बार की तरह उन पलों को रोक लेना चाहते थे

बता नही सके तुम
....

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8 SEP 2020 AT 0:38

वो बारिश की बूंदे
और अहसास उन बूंदों का ....

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1 SEP 2020 AT 5:51

कुछ ज़िंदगियाँ जो कभी नही मरती
न अपनो से कोई शिकायत
न कभी ये रोती है
न कभी ये हारती
एक अजीब सा खालीपन लिए
बस चलती जा रही है
Aimless , senseless
धीरे धीरे....
न सपने बचे है ना इनकी कोई हकीकत
मन के अंदर गूंजते सन्नाटे में
हवा के जैसे सरसराती
कुछ ज़िंदगियाँ जो कभी नही रुकती
मद्धम सी खुसबू के साथ
खुवाब है जैसे तैरते बनते है बिगड़ते है
कभी बसते है तो कभी उजड़ जाते है
बस चलते जा रहे है वक़्त के साथ
ना साहिल का पता है , न पता है शहर का
ठहरेंगे कहाँ ये
कहाँ है इनका सवेरा
वो खुवाब कुछ ज़िंदगियाँ जो कभी नहीं देखा करती

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