and on the quest for finding you,
I lost myself somewhere...-
शाम को शुरू हुई, चली सवेर तक,
इस बार तकिये पर, बरसात हुई कुछ देर तक।
तुम से रूठ कर, झगड़ कर, हाथ छुड़ा कर,
यादों से आगे चलें, पहुँचे यादों के ढेर तक।
अच्छा किया किनारा कर लिया वक़्त रहते,
साथ चल नहीं पाते तुम इतनी देर तक।
सोचना मत की कौन हैं, नीयत क्या है हमारी,
तुम बस लफ़्ज़ों को पहुँचते देखो एक शेर तक।-
आहिस्ते,
इस सन्नाटे के शोर में,
इस रात घनघोर में,
मेरा नाम पुकारो,
मुझे सोने से रोक लो,
आवाज़ दो मुझे,
आहिस्ते।-
चेहरों की भीड़ में आखिर,
चेहरा कब तक छुपाओगे?
एक महफ़िल में आये हो,
नज़्म कोई तो गाओगे?-
बस एक घूँट भर आज़ादी,
प्यास इतनी की क्या कहना।
खैरियत पूछ कर चुप से हैं,
सवाल इतने कि क्या कहना।
आराम सा है एक झूठ के मरहम से,
सच कहता हूँ कि छोड़ो सच क्या कहना।
बरस बीत गये होंगे कुछ दिन के बीते,
जो बात कल की है तो आज क्या कहना।
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चाँद से धूप आ रही है,
दोपहर लगता है,
सब सो रहे हैं क्यों,
सोने वालों का शहर लगता है।-
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
-अहमद फ़राज़-
देर रात है,
शहर शांत है,
बारिश हो रही है,
ना नींद आएगी ना तुम,
बस सिफ़ारिश हो रही है।
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...and when i sought for the songs of love,
all that i found were the melodies of heartbreaks.-