my passion   (Shobha srishti✍️)
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Joined 1 May 2021


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19 HOURS AGO

वेफिक्री से फिक्रमंद तक

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4 MAY AT 19:18

जिंदगी की लालिमा को भरकर आँखो में कसकर
सपनों की बस्ती में फिर ठहरने को जी चाहता है।
उधेड़बुन के धागे में कब तक ऐसे ही उलझते रहेंगे
कुछ पल अपने लिए सुलझने को जी चाहता है।

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21 APR AT 13:53

कुछ पल अपने हिस्से भी आना जरूरी है।
ताकि खोज सके अपने में नवीन संभावनाए

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17 APR AT 11:55

जिंदगी बही जा रही है वक्त की रेत लिए
न जाने कब साहिल से मुलाकात हो।
बिखरने लगी है अब वजूद की कश्ती
न जाने कब सुधरे हुए बेरहम हालात हो

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16 APR AT 13:28

परेशानियो का बोझ चाहे कम न हो मुस्कुराने से
मगर चेहरे की रौनक भी कहाँ कम हुई है मुस्कुराने से
माना थकावट होती है जब साझा करने वाला साथ न हो
कुछ पलों को ही सही विस्मृत होती है उलझनो की कतार
जब किसी चेहरे पर मुस्कुराहट की धीमी सी आहट होती है।

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10 APR AT 21:55

कि सब कुछ सभी जगह मन का नही होता

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29 MAR AT 13:03

कहते है प्रेम अंधा होता है,,,,
लेकिन साथ ही सम्मान का
भूखा भी

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3 MAR AT 22:41

क्यो रखूँ मैं रंज कि जो माँगा वह कभी मुझे मिला नही।
शायद निहित नही हित उसमे यह सोचकर गिला नही।।

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3 MAR AT 13:42

गैरो की निगाहों में चाहे आज भी गुम हो।
अन्तस् को टटोलो ज़रा हर जगह तुम हो।

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25 FEB AT 9:57

कब तक वह यूँ ही उदासी का एक मंजर देखता रहा
सब हरा न सही न ही पतझड़ था सब
फिर क्यूँ हर वक्त बंजर जमीं देखता रहा
उम्र गुजरती गई विचारों के झोंकों में
बाँधे रखा उसने खुद को गुजरते मौंको में
काबिल होकर भी काबिलियत पर संशय रहा
कुछ नया बेहतर को जानबूझ खो दिया
अब नजरों में उसकी डूबती गई अभिलाषाएं थी
क्या बिल्कुल खाली था या था अन्तस में कुछ शेष था
फिर भी धड़क रहा था एक जुनून सा रगों में उसके
अभी कहाँ रुकने वाला था अभी तो लिखना इतिहास बाकी था

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