वेफिक्री से फिक्रमंद तक
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👉 #lifecoachshobhasrishti
मैं नही... कोई कुशल लेखक पर, लिखने का जुनून र... read more
जिंदगी की लालिमा को भरकर आँखो में कसकर
सपनों की बस्ती में फिर ठहरने को जी चाहता है।
उधेड़बुन के धागे में कब तक ऐसे ही उलझते रहेंगे
कुछ पल अपने लिए सुलझने को जी चाहता है।-
जिंदगी बही जा रही है वक्त की रेत लिए
न जाने कब साहिल से मुलाकात हो।
बिखरने लगी है अब वजूद की कश्ती
न जाने कब सुधरे हुए बेरहम हालात हो
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परेशानियो का बोझ चाहे कम न हो मुस्कुराने से
मगर चेहरे की रौनक भी कहाँ कम हुई है मुस्कुराने से
माना थकावट होती है जब साझा करने वाला साथ न हो
कुछ पलों को ही सही विस्मृत होती है उलझनो की कतार
जब किसी चेहरे पर मुस्कुराहट की धीमी सी आहट होती है।
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क्यो रखूँ मैं रंज कि जो माँगा वह कभी मुझे मिला नही।
शायद निहित नही हित उसमे यह सोचकर गिला नही।।-
गैरो की निगाहों में चाहे आज भी गुम हो।
अन्तस् को टटोलो ज़रा हर जगह तुम हो।-
कब तक वह यूँ ही उदासी का एक मंजर देखता रहा
सब हरा न सही न ही पतझड़ था सब
फिर क्यूँ हर वक्त बंजर जमीं देखता रहा
उम्र गुजरती गई विचारों के झोंकों में
बाँधे रखा उसने खुद को गुजरते मौंको में
काबिल होकर भी काबिलियत पर संशय रहा
कुछ नया बेहतर को जानबूझ खो दिया
अब नजरों में उसकी डूबती गई अभिलाषाएं थी
क्या बिल्कुल खाली था या था अन्तस में कुछ शेष था
फिर भी धड़क रहा था एक जुनून सा रगों में उसके
अभी कहाँ रुकने वाला था अभी तो लिखना इतिहास बाकी था
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