खुश थी मैं, जैसी भी थी,
गीने चूने लोगों की छोटी सी दुनिया में थी।
बड़े सपनों की बड़ी उड़ान भरने निकली थी,
पर ना जाने कब वो सपना हीं भूल गयी।
ये बाहर की दुनिया और इसकी दुनियादारी,
मेरे बस की नहीं है ये पारी।
ना इतनी मजबूत हूं,
नाहीं इतनी सयानी।
भेज दो मुझे मेरी पूरानी गली,
थक गई हूं अब लड़ते लड़ते।
बड़े शहर की ये बड़ी रौनक,
भायी ना मुझे कुछ खास।
भेज दो मुझे मेरी पूरानी गली,
जहां से आयी थी मैं उस शाम।
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