Muntazir Firozabadi  
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Joined 16 March 2017


Joined 16 March 2017
27 OCT 2020 AT 12:22

इंसानों की बस्ती से कुछ हारे लोग
थी मजबूरी इंसानों में रहते थे

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27 OCT 2020 AT 12:09

चलते फिरते जिक़्र हमारा होता था
हम लोगों के अफ़सानों में रहते थे

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27 OCT 2020 AT 12:05

वो भी कितने अच्छे दिन थे 'अच्छे दिन'
दीवाने थे दीवानों में रहते थे

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27 OCT 2020 AT 12:00

जिन महलों में कोई नहीं रह पाता था
उन महलों के तहखानों में रहते थे

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27 OCT 2020 AT 11:53

तेज हवा में, तूफानों में रहते थे
फूल थे सूखे गुलदानों में रहते थे

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27 OCT 2020 AT 11:43

दुनिया कितनी भोली-भाली कान की कच्ची लड़की है
अपने घर की दीवारों को हाल सुनाना पड़ता है

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27 OCT 2020 AT 11:33

उसकी आँख में देख रहे हो बस धोका ही धोका है
पार करे कोई सहरा तब इक दरिया भी पड़ता है

मेरा कोई दीन नहीं था लेकिन अब तो दुनिया भी !
मेरे शाइर हो जाने में हाथ तुम्हारा लगता है

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12 OCT 2020 AT 15:10

एक भँवर में डूब रहे थे, जलते - बुझते दो दीए
बचता कोई फिर कैसे जब सात समंदर डूब गए

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12 OCT 2020 AT 15:06

थोड़ी हिम्मत मिल जाती तो बच्चे ये कुछ कर लेते
नाव प' बैठूँ तो लगता है, पंख उभर कर डूब गए

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12 OCT 2020 AT 15:04

होती है कितनी हैरत जब सुनते हैं किस्से उनके
उतरा उनसे जाता कब था और उतर कर डूब गए

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