इंसानों की बस्ती से कुछ हारे लोग
थी मजबूरी इंसानों में रहते थे
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चलते फिरते जिक़्र हमारा होता था
हम लोगों के अफ़सानों में रहते थे-
वो भी कितने अच्छे दिन थे 'अच्छे दिन'
दीवाने थे दीवानों में रहते थे-
जिन महलों में कोई नहीं रह पाता था
उन महलों के तहखानों में रहते थे-
तेज हवा में, तूफानों में रहते थे
फूल थे सूखे गुलदानों में रहते थे-
दुनिया कितनी भोली-भाली कान की कच्ची लड़की है
अपने घर की दीवारों को हाल सुनाना पड़ता है-
उसकी आँख में देख रहे हो बस धोका ही धोका है
पार करे कोई सहरा तब इक दरिया भी पड़ता है
मेरा कोई दीन नहीं था लेकिन अब तो दुनिया भी !
मेरे शाइर हो जाने में हाथ तुम्हारा लगता है-
एक भँवर में डूब रहे थे, जलते - बुझते दो दीए
बचता कोई फिर कैसे जब सात समंदर डूब गए
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थोड़ी हिम्मत मिल जाती तो बच्चे ये कुछ कर लेते
नाव प' बैठूँ तो लगता है, पंख उभर कर डूब गए-
होती है कितनी हैरत जब सुनते हैं किस्से उनके
उतरा उनसे जाता कब था और उतर कर डूब गए-