प्यार के कुछ लफ्जों को, आज जोड़ के बैठा हूं, ख़ुद समझूं या दुनियां को बताऊ, या इस समय खुद के लिए - ख़ुद को प्रेम सिखाऊं, शब्द एक व्याखान एक, पर उसकी बात ख़ुद को जैसे समझाऊं।
व्याखानों में एक सीख मिली, लिखी पुरानी एक रीत मिली, शब्द कोश के जालों मे, हमे हमारी "हिन्दी" मिली, वेद उपनिषदों की वो जननी बनी हर मां बाप की वो सीख बनी, एक वर्णमाला वो जो, हर अमीर गरीब की जुबान बनी।
आज एक किस्सा नहीं कहानी सुनाना चाहता हूं, खुद की या दूसरों की पता नहीं, बस जस्बात पढ़ाना चाहता हूं, कहानी एक, क़िरदार अनेक सबकी बात बताना चाहता हूं, इस युग में जी रहे राजा और रंक को बस ये समझाना चाहता हूं, आज मैं मृत्यु और जीवन का सार बताना चाहता हूं।
बचपन वाली अब वो खुशी कहा, टूटे दात वाली अब वो हंसी कहा, बडे़ होने की जिद में छोड आए बचपन वहा, अब उस पुराने घर में हम कहा? होठों पे मुस्कान कहा, हाथों में खिलौने कहा, बडे़ होने की जिद में अब वो बचपन की खुशी कहा।