मुनेन्द्र कुमार   (© मुनेन्द्र कुमार..❤)
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Joined 13 May 2018


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Joined 13 May 2018

पूँजीवादी महल की चौखट पर बँधा
पूँजीपति मालिक़ के सामने दुम हिलाता
ताज़ा मासूम ज़ानवर का मांस खाकर
गर्वीली उछाल मारता, भौंकता, गुर्राता
ख़ुद को आज़ाद करने के लिए
ज़ंजीर तोड़ने का दिखावा करता
देशी-विदेशी नस्ल का हर कुत्ता
गलियों के खानाबदोश कुत्तों की नज़रों में
क्रांतिकारी और कम्यूनिस्ट होता है।

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जब भी कभी किसी ने
अपने महबूब को ख़ुदा किया...
तब-तब ख़ुदा ने ख़ुद का वज़ूद बचाए
रखने के लिए उनको ज़ुदा किया...!

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फूलों को शोलों में बदलने के हुनर में
कितने माहिर हैं वो लोग...
कि शबनम की बूँदें भी उनके यहाँ
उतरने से घबराती हैं।

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मोहब्बत की आख़िरी हद
गुलाब की महक नहीं
गुलाब का ज़िस्म है
पत्ती-पत्ती बिखर जाए
और मोहब्बत ख़त्म...!

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दिल में नफ़रत,
मुँह पर मोहब्बत रहती है,
दोगलेपन की अक़सर यही
पहचान रहती है।

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रिश्ते किर्चियों की शक्ल में बिखरे तो हैं मग़र फिर भी,
किर्च-किर्च बिखरे आईनों को जोड़ देना चाहता हूँ मैं।

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मेरी तरफ़ से तो टूटा नहीं कोई रिश्ता,
किसी ने तोड़ दिया ऐतबार टूट गया।

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हर साल उम्र के धागे में एक गिरह पड़ जाती है, तमाम साल फिर ख़ुद को सुलझाने में गुज़र जाता है.. आज का दिन आपके बधाई संदेशों और शुभकामनाओं से सराबोर हुआ... आपका दिल से शुक्रिया... तमाम मसरूफ़ियत के बावजूद इतना वक़्त निकालने लिए... आप सब आत्मीय जनों की मंगलकामनाएँ महादेव के पावन मास सावन की हरियाली की तरह दिल को हरा-हरा कर गयीं। इतनी दुआएँ, स्नेह और आशीर्वाद पाकर अनुग्रहित हूँ।
बहुत-बहुत शुक्रिया.. हृदय से धन्यवाद..! यही कोशिश है... यही प्रभु से प्रार्थना है कि ज़िंदगी जितनी गिरहें उम्र के धागे में लगाए, मैं उतनी सुलझता चला जाऊँ.. मेरे कारण किसी का दिल ना दुखे..!

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सजा है झूठ का बाज़ार
फ़िर भी हम सच लिखेंगे..
भले ही न हो कोई ख़रीददार
फ़िर भी हम सच कहेंगे।

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कि कितने फूलों से बनती है
एक फुलवारी
कितनी फुलवारियों से बनता है
एक बगीचा
कि कितने बगीचों से बनती है
एक शीशी इत्र की...!
सबकी चर्चा, प्रशंसा होती रहेगी
लेकिन इन सब बहस-मुहाबिसों के बीच
फूल एकदम चुप्पी साधे
ख़ामोशी से ये सब सुनते रहेंगे..!

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