मैं...
वो सूखा फूल हूँ,
जिसे पहले सीने लगाया गया,
फिर किताबों में सम्भाल कर रखा गया
और शादी के बाद फेंक दिया गया...-
मुट्ठी से जो फिसल गया उसे समेटने में लगा है
गुज़रे वक्त को वो फिर से जीने में लगा हैं
छोड़ दे जाने दे भूल जा उसे कहती है ज़िंदगी
ये मेरा दिल है नादान कि बस रोने में लगा है-
तुम खूबसूरत होते जा रहे हो दिन प्रति दिन
तुम्हें देख दिल मेरा मचल रहा है दिन प्रति दिन
हो रहा है मौसम गुलाबी दिन प्रति दिन
हम करीब जो आते जा रहे हैं दिन प्रति दिन
काश कि तुमसे मिल पाता मैं दिन प्रति दिन
ये दूरियां सताती है मुझे दिन प्रति दिन
पूरी हो जाये दुआ जो मांगता हूँ मैं दिन प्रति दिन
मिरे नाम का सिंदूर भरो तुम माँग में दिन प्रति दिन
जो काम से थक कर आऊं मैं दिन प्रति दिन
बस देख कर मुस्करा देना तुम मुझे दिन प्रति दिन
अपनी पसंद का खाना बनाना तुम दिन प्रति दिन
अपने हाथों से खिलाना मुझे तुम दिन प्रति दिन
संवारना तुम जुल्फें सामने मिरे दिन प्रति दिन
मैं ऑफिस थोड़ी देर से जाऊँगा दिन प्रति दिन
तुम साथ हो ये ख़ाब आता है मुझे दिन प्रति दिन
सहर होते ही साथ छूट जाता है दिन प्रति दिन-
ना माँगी तुमसे मोहब्बत
ना माँगा तुमसे प्यार
ना माँगी तुमसे चाहत
ना माँगा तुम्हारा साथ
बस माँगा तुमसे
कभी कभी सामने आ जाना
अपनी मुस्कराहट दिखा जाना
कभी कभी कुछ गुन गुना जाना
अपनी आवाज़ सुना जाना
कभी कभी दर पे रुक जाना
मेरा हाल चाल पूछ जाना
कभी कभी जाने अनजाने ही सही
मेरी फ़िक्र जता जाना
ना मांगी तुमसे मोहब्बत
ना माँगा तुमसे प्यार
ना मांगी तुमसे चाहत
ना मांगा तुम्हारा साथ-
दिल के पिंजरे में, कैद
एक परिंदा रखना
सब अच्छे बुरे लम्हों में
खुशी के पल चुनिंदा रखना
यादों में जिंदा रखना
-
इक यार है जो मुझे यार नहीं कहता
मेरा प्यार है पर मुझे प्यार नहीं कहता
उसकी आँखें सब बयान करती हैं
मगर लफ़्जों से कुछ बयान नहीं करता-
पाने से कहां कोई मिल जाएगा
खोने से कहां कोई खो जाएगा
मेरा इश्क़ मुझमे मुकम्मल है
तुम्हारे आने जाने से क्या हो जाएगा-
तेरी याद में मेरी धड़कन रो देती है
पलकों पे आते आते मेरे, आँसू सूख जाता हैं
मेरी आवाज़ भी जानती है दर्द मेरा
रोने से पहले मेरा गला बैठ जाता है
तेरा साथ ना होने से टूट जाता हूँ मैं
हर शाम मेरा वज़ूद न जाने कहाँ खो जाता है
मेरे चेहरे की मुस्कान देखते रह जाते हैं लोग
मेरे दर्द तुझे क्या खूब मुखौटा पहनना आता है
फैली चारों तरफ इस हुस्न की दुनिया में
मुझे हर तरफ तेरा ही चेहरा नज़र आता है
तेरे नाम से इतनी अक़ीदत हो गयी है मुझे
तेरा नाम पुकारता हर शख़्स मुझे अपना नज़र आता है
मैं जानता हूँ तेरी भी मजबूरी है मगर
तेरा उसके पास होना मुझ पर क़हर बरसाता है
जब भी सोचता हूँ कि खुल के जी लूँ ज़िन्दगी
फिर न जाने क्यूँ तेरा ख्याल ज़हन में आ जाता है-
तुझे चाहना न चाहना ये मेरे बस में नहीं
दिल तुझे है पुकारता जब भी रात हुई है
सारा मसला तो सुकून का है वगरना
सुबह तो मेरी कितनों की बाहों में हुई है-
लोगों को लिखने के लिए
सोचना पड़ता है
मुझे लिखने के लिए
टूटना पड़ता है
यूँ ही नहीं मैं उसके दरवाजे पर
दस्तक देता हूँ
दर्द शायरी में उतारने के लिए
ज़ख्म बरकरार रखना पड़ता है-