मैं वही अभिमन्यु हूं, जिसे उस युग के महान गुरुओं, राजकुमारों और कर्ण जैसे वीरों ने मुझे छल से घेर कर मारा था, अगर मैं छला न जाता तो, महादेव की सौगंध उसी दिन महाभारत का निर्णय घोषित कर देता...
विध्वंश की पताका से कई साम्राज्य ध्वस्त कर सकता हूं। पराक्रम की अग्नि से कई पुरंदर नष्ट कर सकता हूं।। न्याय के सिंहासन से मृत्यु दण्ड देने को जी चाहता है। फिर से इस भुमि पर एक और युद्ध लड़ने को जी चाहता है।।
जिसकी हुंकार काल के सिंहासन को भी कंपित कर दे, जिसका क्रोध बैरागी शिव को भी भय देने वाला है,जिसके संकल्प से विष्णु भी निंद्रा पाते है। जिसके सम्मुख ब्रह्मा और तैतीस कोटि देव भी जिसकी शक्ति में संरक्षण पाकर आनंदित है, उस महान् आदि शक्ति महागौरी जगदंबा🔱 की शरण का मैं वरण करता हुं।।
शब्दों से मर जाते हैं लोग लाठी के प्रहार से नहीं।। चहरे बदल लेते है लोग,जरूरत नकाब की नहीं।। ये कहावत मुझ पर ठीक नहीं बैठ सकती साहब।। तुम मुझे गोली से मार सकते हो दिमाग़ से तो नही।
मनुष्य उतनी ही धार्मिक बातों का सहारा लेता है, जितनी उसके मन के अनुरुप हो व जिनको वह अपनी दिनचर्या में संतुलित नहीं कर पाता है। अन्य सभी क्रियाएं समाज पर थोप देता है।।