Mukul Thakur   (Mukul Singh (स्वतंत्र))
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Trying to become philosopher but stuck in some weird things!
Joined 20 August 2018


Trying to become philosopher but stuck in some weird things!
Joined 20 August 2018
16 SEP 2022 AT 22:50

खटकने लगे हो आंखों में धुआं तो नहीं हो
लड़खड़ाने लगे हो जिस्म मेरा हवा तो नहीं हो

मर्जों से निजात दिलवा रहे हो दवा तो नहीं हो
मुझे सब्र करना सिखा रहे हो दुआ तो नहीं हो

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26 AUG 2022 AT 1:31

मासूमियत भर रखी है खुद में हमने अपनों के लिये
वरना अपने जज़्बात दिखाना हमें भी आता है

सह लेते हैं लोगों की बातें बस अपना मान कर
वरना उन्हें उनकी औकात दिखाना हमें भी आता है


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16 MAY 2022 AT 20:52

सबकी सुन ली, प्यार कर लिया
कभी भी खुद्दार नहीं रहे

खुद को अहमियत ना दें,
अब इतने भी गंवार नहीं रहे

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30 MAR 2022 AT 0:12

अच्छा हुआ लोग अलग होते जा रहे हैं मुझसे

वरना ये मेरी "अपनेपन" की बीमारी उन्हें भी ले डूबती

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17 MAR 2022 AT 0:12

शायर बनना भी कहाँ आसान होता है

लोग तो वाह वाह करते हैं, बस दिल रोता है

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10 MAR 2022 AT 21:38

तमाम मशवरे मिल रहे हैं हमें अपनी लाचारी पर

जैसे की हम अपने हालात से वाकिफ ही ना हो

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10 MAR 2022 AT 0:38

वैसे चोटें तो तमाम लगती आई हैं जिंदगी में

दर्द बस तुम्हारा जिंदगी में ना होने से हुआ है

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12 FEB 2022 AT 22:26

दर्द होता है

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20 JAN 2022 AT 23:48

ये सर्द रातें, खालीपन और तुम्हारा ख्याल

इजाफा काफी हुआ है इस साल भी दर्द में

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13 JAN 2022 AT 23:30

तमाम लोग मिले, हजारों यार बने
कितनों ने हटा लिये साये, बस कुछ हाथ रहे

कितने भी उतार चढावों में गुजरे ये जिंदगी
दुआ है बस जो मेरे हैं, वो हमेशा मेरे साथ रहें

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