हर इक ऐरा-ग़ैरा ग़ज़ल कह रहा है
मुझे शे'र कहने में डर लग रहा है-
ڈبکیاں روز لکانا مجھ میں
इश्क़ का दरिया है मेरे अंदर
डुबकियां रोज़... read more
मुझे उस से मुहब्बत है मगर मैं कह नहीं पाता
उसे भी इश्क है मुझसे वो भी जाहिर नहीं करता-
2122 1212 22
पत्तियों में निखार का मौसम
गाँव में है बहार का मौसम
हर तरफ़ बस चराग़ रक्खे है
जैसे हो इंतज़ार का मौसम
दूर से ही नमस्ते हेलो हाय
सीख लो है सुधार का मौसम
जो मिले वो सलाम कहता है
इश्क़ है या वक़ार का मौसम
नफरतों से कहो कि घर जाएं
प्यार करलो है प्यार का मौसम-
वज़्न - 2122 1122 22
फिर वही ख़्वाब जगाना मुझ में
इक नया दीप जलाना मुझ में
इश्क़ का दरिया है मेरे अंदर
डुबकियाँ रोज़ लगाना मुझ में
साँप क्यों रहते है मेरे नज़दीक
दफ़्न है कोई खज़ाना मुझ में
एक दरवेश ने पहचाना आज
दर्द कितना है पुराना मुझ में
हिज्र के बाद से है सन्नाटा
आ के तुम शोर मचाना मुझ में-
हर शब जलते है
कई चराग़ मिरे अंदर
इंतज़ार के
एक आग लगती है ज़हन में
हर इक शब को वस्ल की
सजते है दर-ओ-दीवार दिल के
हर शब
मुन्तज़िर तिरे
एक जुआ चलता है रात भर
ज़हन में रक़्स करती है सदाएँ अग्यार की
मय सी कुछ होती है खाली मुझमे
रोज़ मनती है इक दिवाली मुझमे-
छोड़ कर आ गया मै उसको ही
कह रही थी कि छोड़ दो उर्दू
چھوڑ کر آگیا میں اسکو ہی
کہ رہی تھے کہ چھوڑ دو اردو-
122×4
तिरी याद ने क्या से क्या कर दिया है
अगर साथ तू होती तो होता क्या क्या-
वफ़ा करना कभी इल्तिजा मत करना
अना के साथ अपनी दग़ा मत करना
तुम्हारी हर ख़ुशी मे जो ख़ुश होता है
अरे उससे कभी फ़ासला मत करना-