लड़ने दो ज़ुल्फो और
हवाओ को आपस में
तुम क्यों अपने हाथो से
उनमे सुलह करवाती हो |-
इमारते सलामत रही हमारी
छतो का पता नहीं
लिफाफे लिए बैठा हु
तुम्हारे ख़त कहा है पता नहीं!-
तुम "ना " से कुछ आगे बड़ो
में "हाँ" से कुछ पीछे हटू
शायद किसी "शायद " पर कभी हम
मिले!-
जब बात दहेज़ की आयी
सब लम्बी लम्बी हांक रहे थे
एक बाप ने बेटी देदी
लेकिन सब ट्रक मे झाँक रहे थे |-
मे सोच रहा था कुछ लिखू कुछ लिखू
कुछ ऐसा जो बहुत अलग हो.
और ना जाने क्यों कुछ चीज़े आँखों की परतो पर
नमी सी लाने लगी
और एक अंनत यादों का झुण्ड सीधा माथे के चारो
और घूमने लगा
वो यादें वो वादे जो बड़े ही जोश मे खुद से किये थे
अब उनकी तलहटी पर लगा हैँ सिर्फ अफ़सोस
और खुदगर्जी की एक नंगी परत
एक आपबीती जो नहीं सुनाई जो सकती किसी
अपने को
बस सबूत हैँ आँखों की एक नमी पर बिछा हुआ तकिया
और खुद का मायूस चेहरा
जिससे नजर मिल नहीं रही
मन की सारी बातें अब खुद से हो नहीं रही |
-मुकुल-
मैंने कहा कांच की चुडिया है
मेरी पूंजी से
शाम ढलजाने दो तो शुरुआत करेंगे नये सवेरे से
उस रकीब को. में पहचान ना पाया जो खरीद लेग्या तुम्हे
सोने की चूडियो से-
कभी भी overthinking वाले इंसान का दिल मत मत दुखाओ
वरना वह अपनी थिंकिंग से तुम्हे टॉन्ट मरेगा जैसे की -
"यु गैर से हमबिस्तर हो इठला के जो तू आरही है
दूर चली जा मुझसे तुझसे रकीब की भु आरही है. "-