इक अर्से से ख़ुद से नहीं मिला हूँ
के इक रोज़ से पन्ने स्याही नहीं किए
ख्याल अब मेरे सारे
मलाल पर जाके धुआँ हो जाते हैं
नज़मों को लिख रहा हूँ मिटा रहा हूँ
उधेड़बुन सी है एक ज़ेहन में
कलम थोड़ी ख़फ़ा सी है आजकल
मसरूफ़ है अब अल्फाज़ मेरे
इक अलग ही दुनिया में
पड़ाव आता है
सफ़र ए जिंदगी में ऐसा भी
जब दूर भागते हैं जज्बात हमसे
और मेहज कुछ दूर खड़ी कविताएँ
जैसे बस आतुर है आलिंगन में लेने को मुझे
©️ मुकुल जोशी
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