Mukku U   (Mukesh Upadhyay)
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Joined 21 May 2020


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Joined 21 May 2020
3 APR AT 11:43

इससे पहले कि रोकता मैं उस हरजाई को,
वो गले से लगा चुका मेरी अंगड़ाई को।

होंठ खेलने लगे थे सुलगते बदन पर,
जिस्म छूकर गया था रूह की गहराई को।

धड़कनों की रफ़्तार बेताब थी इतनी,
रुस्वा कर दिया हमने ग़म-ए-तन्हाई को।

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9 DEC 2024 AT 13:02

ऑंखों से वो कभी ओझल नहीं हुआ
मिलना फिर भी मुसलसल नहीं हुआ
ऐसा नहीं कि प्यार हुआ ही नहीं हमें
चार मर्तबा हुआ मुकम्मल नहीं हुआ

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7 DEC 2024 AT 1:46

शोहरत अता हुई सिर्फ़ माँ की ममता को,
किसी ने बाप के चेहरे की झुर्रियाँ नहीं देखीं।

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30 NOV 2024 AT 9:39

मद्धम-मद्धम सर्द थी, ये शाम कुछ धुआँ-धुआँ,
लबों को पास लाकर, पूछा उसने क्या हुआ।
दिल-ए-नादाँ बहक गया, तो उसने फिर कहा,
किसी से कहना नहीं, जो अपने दरमियाँ हुआ।

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25 NOV 2024 AT 21:02

ख़त्म होती नहीं ग़मों की तल्ख़ियाँ, दोस्त,
ख़त्म हो चुकी हैं सिगरेट की तीन डिब्बियाँ, दोस्त।

आओ मिलकर कहीं इसकी तहकीकात करें,
आख़िर क्या रह गया है अपने दरमियां, दोस्त।

तुम जो इतराने लगे थे सोने की बाली पर,
शर्मिदा हुई मेरी काँच की चूड़ियां, दोस्त।

एक समंदर हमें हर हाल पार करना है,
हमारे पास हैं काग़ज़ की कश्तियाँ, दोस्त।

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21 NOV 2024 AT 20:15

मेरे मिज़ाज का कहीं मिला नहीं कोई,
यूँ किया दुश्मनी भी खुद से ही कर ली।

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19 NOV 2024 AT 22:22

वो एक शख़्स मयस्सर नहीं हुआ,
किसी की दुआ का असर नहीं हुआ।

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17 NOV 2024 AT 14:59

ये रंज-ए-दिल किसी से कहा नहीं जाता,
मुझको छोड़कर तेरा कोई हिस्सा नहीं जाता।
ये एक मसला है कि तुझसे बिछड़कर,
मैं रह तो लेता हूँ मगर रहा नहीं जाता।

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27 OCT 2024 AT 16:38

सिगरेट पीते हुए ये कह रहा था मुझसे दोस्त
हवा में ज़हर घोलते हैं ये पटाखे दिवाली के

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22 OCT 2024 AT 21:06

गोद बिछौना लगता है
बचपन कितना भोला है
मिट्टी भी सोना लगता है

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