तमन्नाओं की डगर पर हमराही बड़ी तफ़सील से चुनना जो कभी कोई हाथ बढ़ाये तो ख़्वाबों के कारवां मत बुनना अक्सर रेगिस्तान में बेमौत मरते हैं नखलिस्तान के परवाने गर अपनी प्यास हो बुझाना तो मंज़िल पर ही बुझाना
जो ख़त मेरी कलम ने बड़ी तफ़सील से लिखे उस बेदर्दी के फ़रिश्ते ने जवाब मुख़्तसर किये तेरे यादों के सुरूर में अल्फ़ाज़ों के सिलसिले बुन रहा था अब तक तेरी इस मुस्तरद बेरुखी का जवाब कैसे भेजु
मोहब्बत आग के दरिये में इस तक़सीर को न दोहराना ऐ दोस्तो माशूक़ की बंदगी में माँ-बाप को न भुलाना ऐ दोस्तों दिलबर का बेपनाह हुस्न तो सैलाब बनकर टूटेगा ही पर अपने अक्ल की किलेबंदी भी जरूर कर लेना ऐ दोस्तों