Mukesh Tiwari   (Mukesh Tiwari)
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Just an average boy figuring out his average life.
Ig: triceratops.97
Joined 5 April 2020


Just an average boy figuring out his average life.
Ig: triceratops.97
Joined 5 April 2020
25 FEB AT 14:22

तेरी चाहत ने भरी है
मेरे ख्वाबो में कुछ ऐसी रंगीनियत
की हर लम्हा मेरा अब ख़ुशगवांर हुआ
मेहफ़िले सजती गयी और फिर और सजने लगी
पर मैं अकेला रहा
और तेरे हुस्न के गुलफ़ाम क़रीने चख ही पूरा हुआ
कलियों के सौदागर ने भी जब गुलिस्तां का ठिकाना पूछा
तेरे जुल्फों की घनी छाँव में उसने वो मंज़िल पाया
हवाएं क्यों मचलने लगती है एक इत्र की खुसबू से
क्या उन्होंने भी है गुलज़ार तेरी कस्तूरी में पाया
नदियों को और झीलों को लगी एक प्यास है
सागर किनारे खड़ी इन्हे किस मिलन की आस है
दास्ताँ-ए-पुरसोज़ी ये आशिक़ अब कैसे बताये
तेरी तिश्नगी की जलन में एक नशा है, ये कैसे समझाए

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28 JUN 2021 AT 16:11

उस रक़ीब की रहनुमाई पर ऐतबार तू कर
जो महफ़िल को तुझसे, और तुझमे महफ़िल को देखे

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1 APR 2021 AT 11:34

तमन्नाओं की डगर पर
हमराही बड़ी तफ़सील से चुनना
जो कभी कोई हाथ बढ़ाये
तो ख़्वाबों के कारवां मत बुनना
अक्सर रेगिस्तान में बेमौत मरते हैं
नखलिस्तान के परवाने
गर अपनी प्यास हो बुझाना
तो मंज़िल पर ही बुझाना

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30 MAR 2021 AT 21:09

उल्फत के गुलाल मैंने उसके होठों पे कुछ यूँ रगड़ दिए
आज भी हमारी चाय में शक्कर की कमी नहीं होती

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30 MAR 2021 AT 20:54

अपने हुस्न की मदमस्त रंगरेज़ियों की कसक अब और न बढ़ाओ
यूँ तो रंगों का सौदागर मैं सदियों से हूँ
लेकिन तेरी संगमरमर सी बदन की बात ही कुछ और है

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12 DEC 2020 AT 13:29

जो ख़त मेरी कलम ने बड़ी तफ़सील से लिखे
उस बेदर्दी के फ़रिश्ते ने जवाब मुख़्तसर किये
तेरे यादों के सुरूर में अल्फ़ाज़ों के सिलसिले बुन रहा था अब तक
तेरी इस मुस्तरद बेरुखी का जवाब कैसे भेजु

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11 DEC 2020 AT 22:49

तेरी बेरुखी ने जो कसक दी है, मैने सहेज़ रखी है दिल के हुजरे में
जब तेरी वफ़ा-ए-नसीम थम जाए, मुझे भटकने न दे दश्त-ए-बेवफाई में

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10 DEC 2020 AT 0:06

उन ग़ज़ाल सी स्याह आंखों में मैं डूब ही चुका था
की तेरे लबों पे नज़र पड़ी
सुना है मुक़ाबला संगीन था कलियों में उन्हें चूमने को

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9 DEC 2020 AT 23:55

बहारों ने तेरी खुसबू मेरे सीने में कुछ यूं भर दी है
की सांसों की गिनती करने को जी चाहता है

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9 DEC 2020 AT 19:55

मोहब्बत आग के दरिये में इस तक़सीर को न दोहराना ऐ दोस्तो
माशूक़ की बंदगी में माँ-बाप को न भुलाना ऐ दोस्तों
दिलबर का बेपनाह हुस्न तो सैलाब बनकर टूटेगा ही
पर अपने अक्ल की किलेबंदी भी जरूर कर लेना ऐ दोस्तों

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