तेरी चाहत ने भरी है
मेरे ख्वाबो में कुछ ऐसी रंगीनियत
की हर लम्हा मेरा अब ख़ुशगवांर हुआ
मेहफ़िले सजती गयी और फिर और सजने लगी
पर मैं अकेला रहा
और तेरे हुस्न के गुलफ़ाम क़रीने चख ही पूरा हुआ
कलियों के सौदागर ने भी जब गुलिस्तां का ठिकाना पूछा
तेरे जुल्फों की घनी छाँव में उसने वो मंज़िल पाया
हवाएं क्यों मचलने लगती है एक इत्र की खुसबू से
क्या उन्होंने भी है गुलज़ार तेरी कस्तूरी में पाया
नदियों को और झीलों को लगी एक प्यास है
सागर किनारे खड़ी इन्हे किस मिलन की आस है
दास्ताँ-ए-पुरसोज़ी ये आशिक़ अब कैसे बताये
तेरी तिश्नगी की जलन में एक नशा है, ये कैसे समझाए-
Ig: triceratops.97
उस रक़ीब की रहनुमाई पर ऐतबार तू कर
जो महफ़िल को तुझसे, और तुझमे महफ़िल को देखे-
तमन्नाओं की डगर पर
हमराही बड़ी तफ़सील से चुनना
जो कभी कोई हाथ बढ़ाये
तो ख़्वाबों के कारवां मत बुनना
अक्सर रेगिस्तान में बेमौत मरते हैं
नखलिस्तान के परवाने
गर अपनी प्यास हो बुझाना
तो मंज़िल पर ही बुझाना-
उल्फत के गुलाल मैंने उसके होठों पे कुछ यूँ रगड़ दिए
आज भी हमारी चाय में शक्कर की कमी नहीं होती-
अपने हुस्न की मदमस्त रंगरेज़ियों की कसक अब और न बढ़ाओ
यूँ तो रंगों का सौदागर मैं सदियों से हूँ
लेकिन तेरी संगमरमर सी बदन की बात ही कुछ और है-
जो ख़त मेरी कलम ने बड़ी तफ़सील से लिखे
उस बेदर्दी के फ़रिश्ते ने जवाब मुख़्तसर किये
तेरे यादों के सुरूर में अल्फ़ाज़ों के सिलसिले बुन रहा था अब तक
तेरी इस मुस्तरद बेरुखी का जवाब कैसे भेजु-
तेरी बेरुखी ने जो कसक दी है, मैने सहेज़ रखी है दिल के हुजरे में
जब तेरी वफ़ा-ए-नसीम थम जाए, मुझे भटकने न दे दश्त-ए-बेवफाई में-
उन ग़ज़ाल सी स्याह आंखों में मैं डूब ही चुका था
की तेरे लबों पे नज़र पड़ी
सुना है मुक़ाबला संगीन था कलियों में उन्हें चूमने को-
बहारों ने तेरी खुसबू मेरे सीने में कुछ यूं भर दी है
की सांसों की गिनती करने को जी चाहता है
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मोहब्बत आग के दरिये में इस तक़सीर को न दोहराना ऐ दोस्तो
माशूक़ की बंदगी में माँ-बाप को न भुलाना ऐ दोस्तों
दिलबर का बेपनाह हुस्न तो सैलाब बनकर टूटेगा ही
पर अपने अक्ल की किलेबंदी भी जरूर कर लेना ऐ दोस्तों-