सपने में जो हकीकत थी
वो हकीकत में सपना ही है।-
मेरा वक़्त और असफल अनुभव दोनों मिट्टी में खो गया
मैं ज़ब भीगते हुए बरसात में चुपके से रो गया।-
सपने रात के अच्छे कि सपने सुबह के अच्छे
मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता हूँ।
हो आँख खुली या बंद
मैं बस सपने देखना चाहता हूँ।-
पता नहीं कौन सी ख्वाहिशें सिखा रहीं है दुनियादारी
वरना मन तो मेरा कब का संन्यासी हो चला है।
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मैंने सारे ही मौसम बदलते देखे
अपने कमरे की खिड़की के सामने बैठकर
आज मैं अपने मन से बाहर घूम क्या लिया
सारी दुनिया ही मुझे आवारा कहने लगीं।-
मेरी कहानियों का बस इतना सा संसार है
ख़ुद के अंदर ही ख़ूब बक बक कर लेता हूँ मैं
बाहर मेरी खामोशी का एक पन्ना उधार है।-
मेरे हर सवालों के जवाब
मेरी हकीकत, मेरे ख्वाबों को देती है
आँख खुली,
नींद के साथ, ख्वाब भी टूटे
मेरे पास तो बस, अब
उस रात की कहानी रहती है।-
कहानी बस सवालों की थीं
ज़बाँ किसी और की
पूछ कोई और रहा था।
कर सकता नहीं , कोई कुछ
फ़िर भी सोच सोच कर
एक दौर बीत रहा था।
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वो मुस्कुराहटें पसंद कराई जाती है
जो अकेले में आँसुओ से मुलाकातें करते हैं
अंदर ही अंदर बातों का लश्कर लिए
बाहर चुप रहने की दिखलावटे करते हैं।-