Mukesh Raaz  
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Joined 18 March 2018


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Joined 18 March 2018
28 MAY AT 12:50

नहीं हैं किसी की ज़रूरत की मुझ को

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7 OCT 2022 AT 17:44

जब हो जाएं उलफत शेर ओ शायरी से यूॅं
बिन पढ़ें लिखे ही दिवाने को उर्दू आए

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30 SEP 2022 AT 10:08

झूट से भी मोहब्बत हैं हकीकत से ज्यादा
यानी मैं गुनहगार हूँ तोहमत से ज़्यादा

मंदिर मस्ज़िद के दर पे बैठे को खिला दो
मिलती हैं ख़ुशी सच में इबादत से ज्यादा

बैठो भी कभी वक़्त मिले गाॅंव मुहल्ले में
सिखना हो सियासत यूॅं सियासत से ज्यादा

हम तो बुरे हैं बुरे ही बनें रहते हैं पर
बगुला क्यों बना संत जरूरत से ज्यादा

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29 SEP 2022 AT 22:53

ऑंखों में जागें ख़्वाबों को
दिल में किसी के बसे यादों को
जिस्म में गाती जो आहों को
बंद पड़ी राह से राहों को
यूॅं इक दिन सब को जाना हैं

जीवन से साँसों की लड़ी को
पेड़ से भी पतझड़ की घड़ी को
बेकल रातों को यूॅं सहर से
स्टेशन से हर इक गाड़ी को
यूॅं इक दिन सब को जाना हैं

बचपन पीरी और जवानी
बहते हुए दरिया से पानी
घर से बेटी बन कर दुल्हन
ज़ीस्त से हार के क़ब्र में तन
यूॅं इक दिन सब को जाना हैं

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8 SEP 2022 AT 11:41

किसने धूप को रोका हैं किसने छांव को रोका हैं
ये तो आग का दरिया हैं सर्द हवा का झोंका हैं

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7 SEP 2022 AT 12:40

ग़रीबी हम गरीबों की सदा यूं जान लें लेती हैं
कभी दीन ओ धरम तो कभी कभी ईमान लें लेती हैं

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6 SEP 2022 AT 14:02

122 122 122 122
मोहब्बत के झूठी कहानी पे रोए
दिले नादाॅं था फ़िर नदानी पे रोए

वफ़ा मेरी न समझ सकी बेवफ़ा तू
यूॅं तेरी वफ़ा की मेहरबानी पे रोए

तिरी याद दफना दिया दिल की क़ब्र में
मगर इक अज़ीज़ सी निशानी पे रोए

नहीं रोता था दिल अगर ज़ख़्म हो पर
किसी के निग़ाहों के पानी पे रोए

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24 AUG 2022 AT 21:51

वो जितना पास हैं उतना ही वो जुदा भी हैं
यूॅं दिल में रह कर दिल को मगर लुटा भी हैं

उसे मोहब्बत मुझ से यूॅं तो ख़ूब हैं लेकिन
लिखा हुआ उस के नसीब में दुसरा भी हैं

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6 AUG 2022 AT 19:10

1222 1222 1222
मैंने पलकों पे अब सावन सजाया हूॅं
यूॅं इश्क़ में जल के ऑंखों को भिगाया हूॅं
तुम्हें बारिश बहुत ज्यादा पसंद थी ना
तिरे लिए आँसू का बारिश मैं लाया हूॅं

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23 JUL 2022 AT 8:48

तुम ये कैसे जुदा हो गए
मैं जमीं तू आसमाँ हो गए

ऑंखें थीं आईना जो तिरे मिरे
यूॅं बिछड़ के दरिया हो गए

कहकशाँ ये गमों का तेरे
हर तरफ दास्तां हो गए

साथ साया रहा रौशनी में
ज़ुल्मतो में बे-निशा हो गए

दुश्मनों से अदावत थी खुब
दोस्त बन हम-ज़बाँ हो गए

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