Mukesh Gaur   (Mukesh Gaur "बुलंदशहरी")
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Joined 6 June 2018


Joined 6 June 2018
27 SEP 2022 AT 2:38

किसने झटका है इस क़दर
अपनी भीगी सी जुल्फों को,
मेरे शहर में पानी भी साहिब
रुकने का नाम तक नहीं लेता।

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27 SEP 2022 AT 2:29

इश्क़ है, तो कोई खता नहीं,
मगर है, ये भी तो पता नहीं।

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27 SEP 2022 AT 2:28

मोहब्बत, वक्त की मोहताज नहीं,
बस शिद्दत से करना वाला चाहिए।

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27 SEP 2022 AT 2:26

चंद लफ्जों में यूं, बयां हो जाए
अजी, फिर वो मोहब्बत कैसी,
दिल पर वक्त के गहरे जख्मों का
न मिट पाए ऐसा निशान है वो।

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27 SEP 2022 AT 2:22

शोहरत, दौलत सब झुकते देखे हैं
मैंने इस मोहब्बत की दहलीज़ पर,
बस इंतज़ार है, उन चंद लम्हों का
कि कोई इतनी शिद्दत से चाहे मुझे।

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2 SEP 2022 AT 12:55

कभी था गवाह, मैं उसके किस्सों का,
आज ख़ुद उसका एक किस्सा बना हूं।

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2 SEP 2022 AT 12:53

आज न जाने क्यूं, तेरा ख्याल, कुछ ऐसा आया ,
लबों पर नाम तेरा, आंखों में चेहरा नज़र आया।

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2 SEP 2022 AT 12:52

ख्वाहिश है मेरी भी, डूब जाने की,
बस वो समंदर, मेरी पसंद का हो।

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2 SEP 2022 AT 12:48

तुझे उम्र मेरी लगे
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बड़ी मुद्दतों के बाद, इस दिन की फेरी लगे
दुआ है मेरी, मेरे रब से, तुझे उम्र मेरी लगे,

हर दुःख दर्द हो जाए जुदा, तेरी ज़िंदगी से
बस चाहत है, उससे, कि ये दुआ मेरी लगे,

सुकून हो, शाम ओ सहर, तेरी महफिल में
दुआएं दें सभी तुझे आकर न कोई देरी लगे,

सालों साल चलता रहे ये सिलसिला ऐसे ही
नज़र न यूं किसी की, खुशियों को तेरी लगे,

जहां भी, जैसा भी रहे, तू सदा मुस्कुराता रहे
जीवन के सफ़र में न चोट कोई तुझे गहरी लगे,

तमन्ना रखें सब, तेरी महफिल में शिरकत की
जुड़ा रहकर भी अर्श से तू न कभी शहरी लगे,

हर दुआ करता रहे कुबूल, वो मालिक तेरी
चाहतों के बाद भी, न उसमें कोई देरी लगे,

बड़ी मुद्दतों के बाद, इस दिन की फेरी लगे,
दुआ है मेरी, मेरे रब से, तुझे उम्र मेरी लगे।

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16 AUG 2022 AT 13:19

कशिश ऐसी थी, उसकी मुलाक़ात में,
कि मेरे लफ़्ज़ बहके थे सामने उसके।

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