तीन रंग और एक चक्र 🇮🇳
हर भारतीय को इन पर फक्र
🔸
स्वाधीनता दिवस के
अमृत महोत्सव की
सभी देशवासियों को शुभकामनाएँ।-
चली आती हैं हसरतें
फ्रेंड रिक्वेस्ट की तरह।
आकर्षक डीपी,
स्टेटस भी बेमिसाल।
स्वीकार करने के बाद
खेल कर कुछ दिन
दिल के अरमानों से
कर देती हैं 'अनफ्रेंड' या 'ब्लॉक'।-
एक्स-रे, स्केन या डॉप्लर में नहीं दिखती है
है गर मुहब्बत तो बस आँखों में दिखती है।-
पल में बदल जाता है
फिर भी अच्छा लगता है
न हुई उनसे कभी तो
मौसम से शिकायत कैसी।-
सन्नाटों का शोर है सहमी-सहमी हवा चले
कैसी बेचैनी दिखती है अबके बरस पुरवाई में।
बोराया है आम कहीं महक हवा की कहती है
कोयल क्यों नहीं कूक रही है उस अमराई में।
कत्ल किया जिसने वही बैठा मुंसिफ बनकर
देखें क्या हासिल होगा फरियादी को सुनवाई में।
गूँज रहे थे जिसके ठहाके शब भर महफिल में
तकिया आँसू पोंछ रहा था उसके भी तन्हाई में।
आँख से गिरकर बे-मोल रह गया अश्क वही
था अनमोल मोती जब था दरिया की गहराई में।
पत्थर था रास्ते का वो जिसकी तुमने पूजा की
'मुकेश' न जाने क्या देखा तुमने उस हरजाई में।
-मुकेश दुबे
-
तुम्हारी बेरुखी के कंटीले
तार पर रख आया हूँ.....
दो फूल एक उल्टा एक सीधा
पहचान सको तो पहचानना,
कौन हूँ मैं तुम कौन हो.......
-
जान होती है
बे-जान बुतों में भी,
ख़ामोशी में भी
बहुत शोर होता है।
सुन सको तो
सुनना कभी महसूस करना
मौन साजों की सरगम!!-
जीते जी बँट गया मेरा वजूद मेरे अपनो में,
कल रहूँ न रहूँ मैं, महसूस करोगे तुम मुझे।-
नहीं पड़ता फर्क, टूटने से किसी पत्ती के
नहीं कह सकता। फर्क पड़ता है क्योंकि।
तकलीफ़ होती है.... लेकिन....
दोस्त ! मजबूरी थी मेरी तुमको अलग करना।
लगातार गिर रहा था स्तर तुम्हारा,
गर्दन, सीना, कमर, नाभि... अब तुम
उससे नीचे उतर आये और,
तय था टूटकर गिरना पत्ती का
उस शजर से जिसे हमने नाम दिया था-
दोस्ती का.... अलविदा 👋
-