आज सूरज को हरारत है
कहता है ...
चांद की गुस्ताख़
ये हरकत है
देखो ना...
अपने नूर को कुछ इस तरह फैला गया
ठंडी चांदनी में बेपनाह
मुझको नहला गया।
....mudita
-
क्यों ही रोके बहते अल्फाजों को
बहने दे ना....इन बहते जज्बातों को
सरगोशी का आलम है बह जा
दिल की हर दबी बात कह जा
कहना कभी बुरा कभी अच्छा भी है
झूठा भाव मन का कभी सच्चा भी है
बहने दे
बहना ही काम है पानी का
और कहने दे
क्योंकि कहना ही नाम इस कहानी का-
दिल तक जाए
मतलब ......दिमाग की बत्ती जलाए
और ..अपने होने का मतलब समझाए
कला वो नही जो कुछ भी कह जाए
जिसका मतलब समझ न आए
कला तो ब्रह्म का एक प्रकार होना चाहिए
कलाकार के मन का साक्षात्कार होना चाहिए
वो जो आपको अंदर तक छू जाए
वो जो सुंदरता का भाव दिखाए
वो जिस मे छल न हो
वो जिस का आज कल न हो
वो जो शाश्वता का अनोखा प्रकार हो
वो जो परमानंद का विस्तार हो-
तो कुछ बट जाएगा
दर्द ज़हन का जो है
थोड़ा तो हट जाएगा
कहते है की बाटने से बढ़ता है प्यार
तो कर ले यार चल ...मिलके बातें चार
दिल की हर गिरह खोल दे आज
मन की हर दबी बात बोल दे आज
अपनी जिंदगी का एक पल भी
अब अतीत को नही देना है
जो बीत गया सो बीत गया
अब उस से क्या ही लेना है
असंख्य आशाएं सैकड़ों सपने
साथ तेरे है तेरे अपने
बदल जा ..बदलाव प्रकृति की रीत है
और न जाने तू कितनी आंखो की उम्मीद है..mudita-
तुम ठीक ही हो
मेरी बर्बाद जिंदगी को
तुम सीख ही हो
होकर भी नही हो
ये अच्छा ही है
इश्क मुकम्मल नही
ये बच्चा ही है
पर कोई न
सीख गए जीना अब
बेइंतहा बेपरवाह पीना अब-
की आज फुर्सत में है हम
तो सोच रहे है
लेले थोड़ा ...थोड़ा दम
वरना फिरकी से घूमते है
काम के नशे में हर वक्त झूमते है
खुले आसमान तो जैसे बंद हो चुके
आराम के लम्हें.....कबके सो चुके
आज उन आसमानों में एक खिड़की खोल दे
और आराम के लम्हों के कानों में बोल दे
थोड़ी रोशनी मुझे पर डालो
थकी थकी ज़िंदगी को कुछ तो संभालो
क्योंकि आज न कुछ पाना न कुछ खोना है
बस और बस चैन की गोद में
चैन की नींद सोना है-
की आज फुर्सत में है हम
तो सोच रहे है
लेले थोड़ा ...थोड़ा दम
वरना फिरकी से घूमते है
काम के नशे में हर वक्त झूमते है
खुले आसमान तो जैसे बंद हो चुके
आराम के लम्हें.....कबके सो चुके
आज उन आसमानों में एक खिड़की खोल दे
और आराम के लम्हों के कानों में बोल दे
थोड़ी रोशनी मुझे पर डालो
थकी थकी ज़िंदगी को कुछ तो संभालो
क्योंकि आज न कुछ पाना न कुछ खोना है
बस और बस चैन की गोद में
चैन की नींद सोना है-
और दूर कही वो मुझसे मिलती है
कहती है
बहुत दिन हुए ...तुझे जाना नहीं
माफ करना मैंने पहचाना नहीं
बीती कितनी बहारे ...तू कभी आया नही
मेरा साथ कभी तुझे भाया नही
अब क्यों आया है
कहां चोट खाया है
कितनी बार मुड़कर मैंने देखा तुझे
पर हर बार ....तूने दूर फेका मुझे
अब और सहने की मुझमें हिम्मत नही
तेरी मेरी शायद एक किस्मत नही — % &-