तू ख्वाबों में न आया कर, ये नींदे भी चुराने को,
कि तुझको चाहते हैं हम सुबह से साम,काफी है।
तुम्हारी याद में दिन-रात मयखाने थोड़ी जाना,
बस इन आंसुओं के साथ एक- दो जाम काफी है।
वो करना चाहती है रुसवा सरे बाजार में हमको,
हम वैसे ही शहर में बदनाम काफ़ी है।
बेवफा, मतलबी, अनाड़ी, खुदगर्ज..
अरे अब बस भी करो, ये इल्ज़ाम काफी है।
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