मृणालिनी ✍️   (मृणालिनी)
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Cogito ergo sum
Joined 18 April 2020


Cogito ergo sum
Joined 18 April 2020

सबकुछ छूट गया
हंसना
शोर
बेफिक्री
न जाने कौन लूट गया
दहलीज
किवाड़
सभी बंद
फिर घर कौन लूट गया
सबकुछ छूट गया
मोह गया माया भी छूटी
अपना छूट गया
घर क्यों ये लूट गया

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मैं योर कोट पर अब kabi nhi aaungi
Sabko dheron sara dhanyavad ninhone उत्साह बढ़ाया
और सबको ढेरो प्यार

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14 DEC 2022 AT 23:37

मुझे सिखाया
नया तजुर्बा
मिलना जुलना
घूम घूमकर
कहीं उलझना
कहीं सुलझना
बातों से सौ बातें करना
एक बात की जिद में पड़कर
सौ बातों की बात पकड़ना
नये मित्र कुछ नये से अपने
लगते कोई घर के अपने
भूलभुलैया रिस्तेदारी
बिन नातों के नातेदारी
तुमसे जुड़ कर मैंने पाया
सुनो पोस्ट के वाई क्यू
बाबा
दूर करो न रिस्तेदारी

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अभी खिली है
अभी मिली है
मुझे धूप ये प्यारी
सुबह सवेरे
अगर मिले तो,
होती है गुणकारी।
धूप अगर न खिलती
तो सब अकडे अकड़े होते
मंगल चाचा की शादी वाले
कपड़े जकड़े होते।
कहां लगाती मैं ही उबटन
अगर धूप न होती
सही बताओ धूप बिना
क्या इतनी सुन्दर होती?
धूप बिना नाउन चाची
कब सूप चलाती होती
बाबा की भीगी धोती भी
पड़ी कहीं पे रोती😇😇😇


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तुम बिन
कितने दिन
कितनी रात
कितनी घड़ियां
कितनी बात
गंवाई मैंने
सुनोगे
सुस्ताकर बताउंगी
अजी बड़ी जल्दी आज
फिर कभी आऊंगी
छण भर कि न छुट्टी
परांठे बना रही
बीच -बीच मे
मम्मी की आवाजें आ रही
तुम कहीं न जाना वाई क्यू
मैं आऊगी
अगर बूढ़ी न हुयी
तो जरुर बताऊंगी
बड़ी व्यस्त हूं
पढ़ाई जो करनी होती
खैर अब तुमसे क्या कहना
🤦🤦🤦🤦🙏

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27 SEP 2022 AT 23:47

आत्मिक होना ही ईश्वर में आस्था रखना है..

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26 SEP 2022 AT 18:15

सुनो राम!
करुणा के सागर।
सुनो-सुनो हे
अतुलित बलधर।
मन निष्काम
कर करे प्रणाम।
रघुकुल सूर्य
तेज के धाम।
मेरे राम।मेरे राम।।

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29 AUG 2022 AT 12:59

बंद कोनों में
छिपे एहसास...
कभी कड़वे सवालों के
या मीठी स्मृतियों के
जीवन में चन्द्रकलाओं
के सरीखे लगते हैं...
कभी अमावस की गहराती रात से
दुःख घोलते जीवने में,
कभी बन जाते छटा निर्मल रश्मियों की
दूधिया निरा श्वेत ।
बंद कोनों में छिपे एहसास
एकदम एकांत में भी
समूह सरीखे होते।
उठाते सवालों की श्रृंखला
करते रहते संवाद
उलझते और स्वयं सुलझाते प्रश्नों को
दूरियों में नजदीकियां लाते
सहेजते रिश्तो को
स्नेह से प्रगाढ़ करते प्रेम को
ये बंद कोनों के एहसास
सचमुच ईश्वर के वरदान स्वरूप लगते...

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27 AUG 2022 AT 22:29

बड़की जिज्जी

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20 AUG 2022 AT 11:50

चली गई काश्तकारों की काश्तकारी
बाबा के बड़े बीघे,छोटे हो चले आकारों में
उपजने को उग ही जाते हैं
मूंग,मटर ,चना,अरहर
पर नहीं उग पा रही जमींदारी
कपड़े की गांठो में उगते आज भी मूंग
कल कहानियों में लिखी जायेगी इनकी कथा
भावी भविष्यफल में बिखेरी जायेगी उदारता
पैकटों में रोयेंगे मूंगों के वंशज
बाबा की फसल अभिलेखों में दर्ज होगी
पीढ़ियां खोदेंगी खड्डे भावी पीढ़ियों के लिए
बाबा के बेटे बाबा होंगे
कुछ के किस्से बनेंगे
कुछ किस्सो में खरपतवार समझकर
नष्ट कर दिये जायेंगे।

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