चली गई काश्तकारों की काश्तकारी
बाबा के बड़े बीघे,छोटे हो चले आकारों में
उपजने को उग ही जाते हैं
मूंग,मटर ,चना,अरहर
पर नहीं उग पा रही जमींदारी
कपड़े की गांठो में उगते आज भी मूंग
कल कहानियों में लिखी जायेगी इनकी कथा
भावी भविष्यफल में बिखेरी जायेगी उदारता
पैकटों में रोयेंगे मूंगों के वंशज
बाबा की फसल अभिलेखों में दर्ज होगी
पीढ़ियां खोदेंगी खड्डे भावी पीढ़ियों के लिए
बाबा के बेटे बाबा होंगे
कुछ के किस्से बनेंगे
कुछ किस्सो में खरपतवार समझकर
नष्ट कर दिये जायेंगे।
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