मृणाल श्रीवास्तव   (माधवा)
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Joined 11 May 2020


Joined 11 May 2020

सालों बड़े सुकून से रहा मैं तिरगी में
उजाले आइ मौत का पैगाम लेकर

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इश्क को हसरत है जुदाई की
दर्द मिलते हैं दिल मिलाई की
नही मिलती वफ़ा इस ज़माने में
महबूब खुश होता है सताने में

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पहले क्रिया तो करो
हम क्रिया कर्म तो कर ही देगे

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आजमाने के चक्कर में हैंडसम को खो दिया
शादी हुई तो पोपला दुल्हा मिल गया

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हम प्यार में खुद को खो बैठे, पर उनको शिकायत है मुझसे
मेरी बाहों रहने की तमन्ना से अब बगावत है उनको

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मिट्टी की मूरत को संगीन पत्थर बना दिया
हमारे प्यार ने उस पत्थर को नायाब मूरत बना दिया

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हमने भी गुजारी है फुरकत के वो हजारों पल
आज नही है तो क्या फिर आएंगे वो कल

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तू बोल नही सकता पर वफादार बहुत है
इस दुनिया में नहीं रंगा तू तुझमें प्यार बहुत है

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मेरी नज़र तो सदा ही तुम पर रही है
अपनी निगाहों को तुम विराम दे दो

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शायद
मुझे प्यार करने का तरीका नहीं आया
और तुम्हें सम्हालने का सिलिका नहीं आया

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