Mrityunjay prasad   (मृत्युन्जय प्रसाद)
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Joined 6 June 2020


Joined 6 June 2020
21 SEP 2023 AT 20:25

।। पश्चाताप स्वयं में एक शिक्षक है ।।

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21 SEP 2023 AT 20:03

इतनी मेहनत करो
इतनी मेहनत करो
कि तुम्हारी मेहनत तुम्हें एक इतने सफल व्यक्ति के रूप में परिवर्तित कर दे और तुम्हारी कीमत इतनी बढ़ जाये,
की जो भी तुम पाना चाहो ,
वो खुद ही तुम्हें पाने की चाहत में उत्सुकता से प्रयत्न करे।।

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14 SEP 2022 AT 21:19

" वर्तमान में जो बोएँगे,
भविष्य में वो ही पाएँगे
गर सोंचे आज नहीं ,
तो कल पक्षताएँगे"।।

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13 SEP 2022 AT 0:26

वो बन्द किताब हूँ, जिसे पढ़ने की उत्सुकता तो जताई थी बड़ी प्रेम से,
पर कभी जिसे खोला ही नहीं

तुमने मुझे अपनी उन किताबों में सँजो कर रखा है ,जो तुम्हें हैं बेहद ही पसन्द,
पर अनजाने में ही सही जिसे कभी छुआ ही नहीं

तुम पढ़ती हो किसी न किसी किताब को रोज ही
जो कभी मुझसे दूर वाली ,
तो कभी मेरे बिल्कुल पास की,
कभी मेरे दाँए की,
तो कभी मेरे बाँए की किताब
यहाँ तक की तो किसी -किसी को पढ़ा है ,
तुमने कई- कई बार
पर ऐसा क्या जो तुम्हारा हाँथ न बढ़ा मेरी तरफ एक भी बार

इस अजनबी रवैये ने तुम्हारे इस भेद को बयां कर ही दिया
जिसे तुम मौन रह कर छुपाती रही हर बार
कि मै हूँ, तुम्हारी इस दुनिया में कितना खास
जिसे अथाह घृणा है मुझसे या फिर अनन्त ही प्रेम



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10 APR 2022 AT 22:03

""प्रकृति की सुरक्षा
हमारा परम कर्तव्य है""

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13 FEB 2022 AT 21:13

जरूरी नहीं की, "प्रेम "
हर रोज मिलने,
पास रहने,
और बातें करने से ही निभाया जाए ।
कभी- कभी दूर रहते,
बिना देखे,
वर्षों बात किए बिना भी निभाया जा सकता है।
बशर्ते" प्रेम" के ऐहसास दोनों के दिल से होने चाहिए।
दिमाग से नहीं.....

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11 FEB 2022 AT 17:42

प्रेम में शंदेह का स्थान नाम मात्र भी नहीं
प्रेम तो विश्वास से चलता है
शंदेह ने तो बस घर तोड़े है
विश्वास ने सदा ही जोड़ा है

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14 JAN 2022 AT 22:31

मनुष्य की प्रगति में सबसे बड़े बाधा
उसके स्वयं के विचार हैं और सफलता में
उसके महत्वपूर्ण सहयोगी भी
बस निर्भर इस बात पर करता है ,की
विचार किस तरह के थे......

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24 NOV 2021 AT 13:01

क्योंकि अहम ने बस स्वयं को देखा
औरों को नजरों से गिराया है
अपने को सबसे ऊँचा ही समझा
औरों को बस झुकाया है
नहीं दे सका कुछ,
कभी किसी को
अन्त में बस पछताया है
अहम तो था ,
उस खजूर के वृक्ष को भी,
अपनी ऊँचाईंयों पर
न दे सका सुकूं कि छाँव या मीठे फल
एक तूफान में फंस वह नष्ट हुआ
क्या अहम उसे बचा पाया है
सोंच के देखो स्वयं के भीतर
अहम ने खुद हमें झुकाया है


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19 OCT 2021 AT 21:39

सदैव प्रशन्न रहें और मस्त रहें
कौन क्या सोंचता है ,
आपको लेकर यह ध्यान न दें कभी
क्योंकि इस जमाने में आप सभी को एक साथ खुश नहीं रख सकते
जिस वजह से कुछ लोग आपसे खुश हैं,
तो उसी वजह से कुछ दुःखी
मस्त रहिए अपनी मौज में
ये तो जमाना है ,
जो आज खुश है
तो कल दुःखी

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