मेरी शक्सियत का मेरे वजूद से अंदाजा न लगा पाओगे तुम,
मैंने एक उम्र देखी है इतनी सी उम्र में।-
Not exactly a writer
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बन जायेंगे उस दिन
लेखक हम भी,
लिख पाएंगे जब
मन की गहराइयों को
कागज़ के चंद पन्नो पर।
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रोज़ गढ़ती हूं
गीली मिट्टी से खुद को
रोज़ मैं सांचा
तोड़ देती हु।
जब बनने लगते है
हवाओं में
सपनो के कहीं महल
मैं हवा का रुख भी मोड़ देती हुं।
भर के दिल शब्दो से
लिखती हूं मिटाती हूं
और इसी तरह पन्ने पर मैं
आधी कविता छोड़ देती हूं।
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Life is like a river which is constantly flowing but what I generally do is to abstain myself from flowing . I desist myself, try to refrain myself to get plunge in fear of being drowned but little do I know that life exactly demands the opposite of it. It asks us to take that leap of faith and dive deepest like really deep into the river and see what beautiful scenes it offers with the open eyes and heart. You may flow through the edgy corners or may go through the vague routes ,sometimes you may lost the flow or may get flooded but ultimately you will reach the ocean somehow. And that is precisely life asks us.
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Thoughts swoops
In my head
Like a serpent slides
In the crevices
And stays there
Not until it stings
Anyone.-
बूंद बूंद गिर कर रिस रही थी तन्हाई
आंखो की नदियां भी रुक रुक कर दे रही थी गवाही
नारंगी सूरज को झुक झुक कर ढलना पड़ा तब जाकर ये शाम आई,
जब मिलना था पलक को अपने साथी से
जब चांदनी बरसा रही थी नूर अपने हाथो से
जब भीनी सी खुशबू आई हाथ थामने रात रानी से
उस समय में जाना था मुझे सपनो के गलियारों में
जब ओस अपनी चादर उढ़ा रही थी खेत खलियानों में
जल्दी पहुंचना था चांद को भी सुबह की मीनारों में
कितना कुछ रह गया था समेटने को
कितना कुछ था दिमाग की गिरहें खुलने को
कितना कुछ था सोच कर निष्कर्ष निकालने को
तुम्हारे आने का इंतजार तो खत्म हो चला है
मेरे ही शब्दों ने मेरे जज्बातों को छला है
मद्धम सी आग में बरसो से मानो दिल जला है
पर अब निकल जाना है इस वहम के घेरे से
बढ़ जाना है आगे यादों के इन डेरे से
जैसे पंछी उड़ जाते है अपने रैन बसेरे से।-
बहुत महंगी कीमत है खुशी की
ख्वाहिशों को गिरवी कर रखा है हमने।
बड़ी ला इलाज है ये बीमारी
मर्ज को ही दवा कर रखा है हमने।
होंठो की एक हल्की सी मुस्कान के लिए
शिद्दत से खुद को खर्च कर रखा है हमने।
सपनो का जरूरतों से मेल करा कर
नींदों का रातों से सौदा कर रखा है हमने।-
गर्द ए जिंदगी कभी आई तो हाथ बढ़ा कर उसने मेरा आंचल ओढ़ा,
मंजिल तक साथ लाकर उसने दो कदम पर रास्ता मोड़ा,
तन्हाई, बेकरारी, अजाब, तवक्को, ये सब दिया पर
इश्क के समुंदर में उसने मुझे डुबाया और कहीं का भी नही छोड़ा।-
कहीं नहीं जाते है ख्वाब
वो पलते रहते है
सुलगते रहते है,
ख्वाहिशों की आंच पर
धीरे धीरे मद्धम मद्धम।
हक़ीक़त की ज़मीन पर
बैठे होते है छुप कर
कहीं आंखों के सिरहाने पर,
कंखियों से निहारते है
राहें हमारी।
समाना चाहते है
लकीरों के छोटे से
आशियाने में,
इस बात से अंजान के
रेत जैसे होते है ये,
फिसलना होती है
इनकी फितरत।
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