एक बिंदी से चला जो कारवां अल्फ़ाज़ का
दो दिलों के दरमियां वो इश्क़ का आगाज़ था
हाथ तेरे सौंप दी अब ये मुहब्बत की निशानी
इसको मेंहदी में सजा, तारा बना ले मांग का
(**मृदुल बाजपेयी 14.03.25,9:44pm)-
हमसफ़र की तलाश में एक उम्र हमने गुज़ार दी
न सफ़र कभी पूरा हुआ न हमसफ़र ने पुकार दी
तेरे शहर से गुज़र गया ग़ुबार–ए–इश्क़ वो आदमी
इबादतों में जो थी दुआ दर असल वो असार थी
मृदुल बाजपेयी (09.02.25,8:30pm)-
कुछ बोल तो,थोड़ा हंस सही, ख़ामोश रह के सज़ा न दे
यही चंद लम्हे हैं आखिरी कहीं मौत मुझको उठा न ले
सर ए राह उसका मुकाम है उस गली से गुजरना छोड़ दे
वो शख़्स भी लस्सान है कहीं तुम्हें पकड़ के बैठा न ले-
तेरे मौसमों के लिबास हैं और गुलों से खुशबू पाई है
तेरे नैन–ओ–नक्श कटार हैं तेरा रुप–ओ–रंग रूबाई है
तेरे हुस्न–ओ–जमाल को इस तरह लफ्ज़ों में पिरो दिया
एक एक शख़्स ज़िबह हुआ ये ग़ज़ल जिसे सुनाई है
मृदुल बाजपेयी (09.02.25,4.30pm)-
गुल–ए–चमन की तलाश थी, गुल–ए–सुर्ख कोई मिला नहीं
फ़स्ल–ए–गुल आई गई कई दफ़ा जीवन से पतझड़ गया नहीं
मृदुल बाजपेयी (05/02/25,7:50 AM)-
कच्ची मिट्टी जैसा होता है बचपन
तितली जैसा चंचल होता है बचपन
बेफ़िक्र हमेशा स्वप्न लोक में घूमे मन
कल कल झरने जैसा होता है बचपन
इंद्रधनुष सा सतरंगी होता है बचपन
अल्हड़ और अतरंगी होता है बचपन
हठ से न हटने पर आमादा हो दिल
एक बैरागी के जैसा होता है बचपन
मौलिक/स्वरचित- मृदुल बाजपेयी 'अम्बक'
(02/07/24, 12:00am)
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हैं प्रतीक्षा में तुम्हारी, द्वार के दीपक अभी तक
तुम अगर 'हाँ' बोल दो तो, गुल से मैं राहें सजा दूँ
स्व रचित- मृदुल बाजपेयी (14/06/24, 7:00pm)-
दास्तां कह रहे हैं पाँव के छाले,तुम्हारी।
इन्सां ज़र्फ थे तुम, जो उसूलों पर चले थे। ।
स्व रचित- मृदुल बाजपेयी
(13/06/24, 6:00pm)-
चल कहीं दूर दुनियाँ की इस भीड़ से,
दो घड़ी साथ बैठेंगे ऐ ज़िंदगी ।
झूठ का हँसते हँसते बहुत थक गए,
दो घड़ी मुस्कुरायेंगे ऐ ज़िंदगी ।
ख़्वाहिशें ख़त्म होंगी नहीं उम्र भर,
थोड़ा बहलायेंगे मन को ऐ ज़िंदगी ।
हर क़दम साथ दे कोई मुमकिन नहीं,
इश्क़ फरमाएंगे ख़ुद से ऐ ज़िंदगी ।
स्वरचित। मौलिक- मृदुल बाजपेयी
(12/06/24, 9:00am)-
चल चलें दूर दुनियाँ की इस भीड़ से, दो घड़ी साथ बैठेंगे ऐ ज़िंदगी
झूठ का हँसते हँसते बहुत थक गए, दो घड़ी मुस्कुरायेंगे ऐ ज़िंदगी
स्वरचित। मौलिक- मृदुल बाजपेयी
(11/06/24, 8:00am)-