Mr Vinay   (Mr John)
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Joined 7 April 2020


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Joined 7 April 2020
17 MAR AT 16:28

यूँ-तो हैं बड़ी "मुश्किल",
"विश्वास-ऐ-यकीन"
अब हर ''किसी-पर",
फिर "नज्म-ऐ-सुकून"
ये कैसा-हैं,
जब "हैं-दिल" में,
"मंजर-ऐ-तन्हायाँ"
तो "फिर-ये" बाहर ये-हुजूम "कैसा-है"

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18 FEB AT 18:13

यू-तो हैं,
"ज़ख्मे-ऐ-दिल" कितना...
और
"दिले-ई-दर्द" हैं, कितना..
बस "बता-नही" सकता,
ग़र "सको-समझ" तो "इन-आँखों" से
"तो-समझो"
गिरे-हैं "आँसू-ऐ-जज्बात"
कितना,
बस "गिना-नही" सकता!

-


27 JAN AT 16:25

यू-तो "कहने-को",
कि-सी "भीड़-ऐ-अपनों"
सी हैं, ये "दुनिया"
"फिर-क्यों",
"आगजे-इश्क़-ऐ-रुसवाई"
के-बाद
"तन्हा-सा" रह जाते हैं, ये-इंसान....

-


17 DEC 2023 AT 15:59

"आंजामें-इश्क़" में
यू तो, मिलती हैं "हर किसी-को"
"शोहरत" या "रुसवाई"
लेकिन
"जिस्मे-ऐ-इश्क़",
हैं-आजे-इश्क़ की "सच्चाई"

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6 AUG 2023 AT 18:03

"हैं-दूर" मुझसे, यू तो "पास-भी"
हैं "तेरी-मौजूदगी"
कमी का "एहसास-भी",
यू-तो होंगे लाखों "इस-दुनिया" में
पर हम-सा "महफ़िले-ई-शाम",
क्या हैं, "किसी-के" पास भी...?

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16 JUL 2023 AT 17:46

थी,
जैसे जलानी,
वैसे,
जला-दी हमने
"ये-ज़िंदगी"
"राखो" पर "ये-ऐतराज़" कैसा
उठे "इन-धुओ" पर "बहस-कैसी....??"

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6 NOV 2022 AT 17:29

यू -तो, हूँ-मैं ईक "शामे-ए-चिराग",
अंधेरों मे-भी यू "मुस्कुराउंगा"
रख "संभाल" यू-मुझे..........
"वक़्त-हूँ", जनाब
"वक़्त" पर हमेशा "काम" आऊँगा।

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31 AUG 2022 AT 17:06

हैं,
"इश्क़" जो ये,
फना होने की "कहानी"
तो फिर क्यों.....
"आजे-इश्क़" जो ये
"दास्तां-ऐ-जिस्म" हो गया.....?

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20 JUL 2022 AT 18:25

यू एक-ही गलती ज़िंदगी की
यहि.....
बार-बार होता हैं,
देखेंगे मुड़कर, भी ना कभी-जो
सिर्फ़, उनका ही इंतजार होता हैं।
क्या कहतें हों,
क्या यही प्यार होता हैं...?

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8 MAY 2022 AT 15:33

हैं "तू" तों बहुत "नादान-आईने",
हैं-क्या "तुझे" इतनी ख़बर......?
होंता हैं, यहाँ "इक-चेहरा",
एक-चेहरें के ऊपर......

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