तुम भूल रही हो अस्तित्व जो खुद का चलो आज दोहराता हूँ।
तुम जगत जननी का अंश हो, जगदंबा तुम्हें बुलाता हूँ।
यह जग तोड़ेगा गुरुर तुम्हारा, है खुद पर इतना घमंड इसे,
नादान है शायद भूल गया, चलो इसकी भूल बताता हूँ।
जो जन सकती है प्राण तुम्हारे उसको हरने का भी कोई मोल नहीं।
और तुम कहते हो तुम उस नारी का भविष्य रचोगे,
जिसके कालरात्रि स्वरूप के आगे नतमस्तक शीश झुकाता हूँ।
जिसका स्वरूप है कोमल उसका एक और रूप दिखलाता हूँ।
हाँ जिन्होंने महिषासुर को फाड़ दिया, माँ दुर्गा उन्हें बुलाता हूँ।
चलो तुम्हें तुम्हारे अधर्म जो सारे आज तुम्हें गिनवाता हूँ।
चले हो नारी को मर्यादा का पाठ सिखाने उसका अस्तित्व बताता हूँ।
जो खुद मर्यादा को लेकर जन्मी थी माँ सती भी उन्हें बुलाता हूँ।
और क्रोध में आकर के जिन्होंने चंद मुंड का मस्तक काट दिया,
माता के इस काल स्वरूप से शक्ति का परिचय पाता हूँ।
और कहूँगा गर ज्यादा तो नारी से थर-थर काँपोगे,
इसीलिए नारी को अक्सर ही शक्ति का परिपूर्ण स्रोत बताता हूँ।
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