अंतः अस्ति प्रारंभः   (#♥️✍️पु s पे n द् ✍️♥#)
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Bio Under Process...📍
Joined 13 October 2019


Bio Under Process...📍
Joined 13 October 2019

सूरज की आखिरी किरण में खोया साया,
दो आत्माओं का संवाद, अनकहा खेलाया।

लहरें चुपचाप सुनें वो कसमें पुरानी,
जो वक्त ने छुपाई, धूप में बिछानी।

हवाओं में दबी सिसकियाँ, सपनों की गूंज,
प्यार का मायाजाल, समय की रंगीन पूंज।

हाथों का स्पर्श, एक अनंत वचन,
जीवन की गहराई में छुपा प्रेम का भजन।

अंधेरों के पार एक उजाला ढूंढें,
दो दिलों की डगर पर सितारे बिछाएं।

यह मिलन नश्वर, पर एहसास अमर,
सागर की गोद में लिखा प्यार का पात्र...

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तेरी 🫵 मुस्कान जैसी लगती है ये "चा❤️य" की पहली चुस्की,
बिना कुछ कहे ही कह जाती है हज़ार सी बात कुछ सी...

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हर रात की कहानी है, चुप-चाप सी रवानी है,
आँखों में जो ठहरी है, वो अश्क की जवानी है।

जागे हैं जिन दीयों तले, बस तन्हा इक निशानी है,
उजालों से डरते हैं हम, ये दिल की बदगुमानी है।

चाँद ने कुछ कहा होगा, बादल ने कुछ छुपाया है,
इक साज़ है फिज़ाओं में, और दर्द की रिहानी है।

रातों की उन गलियों में, कुछ ख़्वाब उलझ जाते हैं,
हर मोड़ पे खामोशी की, इक दर्द भरी कहानी है।

तू नींद में जो आए तो, जागा हूँ मैं मोहब्बत से,
तेरी याद हर शब की, मसरूफ़ इक दिवानी है...

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चुप्पी के आलम में सच्चाई की चमक उठे,
हर सवाल का जवाब वो स्याही से लिखाई दे।

दर्द की गहराई में छुपा है मोती का कण,
खुदाई करो थोड़ा, अनमोल बातें पाई दे।

नदी की धारा सी बहती है अधूरी चाहत,
किनारे पर आकर वो मुकम्मल कहानी सजाई दे।

सितारों की चादर ओढ़े रात की गोद में,
ख्वाबों की गहराई से सुबह की किरण लाई दे...

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अंधेरे के आगोश में दबी वो चाँदनी,
जैसे सावन की बूंदें सिसकियाँ बन चलीं।

लाल चूड़ियों की खनक में गूँजती है पीर किसी,
खोए हुए सपने की अधूरी कसम खींचती है भीतर।

हाथों की लकीरें, जैसे किस्मत की जंजीरें,
आँखों में छुपा समंदर, आंसुओं की सीमाएँ।

सन्नाटा बोलता है, कहानी सुनाता है वक़्त की,
सिलवटों में दफ़न प्रेम का मातम छुपाता है।

रात का साया गहरा, मन का बोझ और भारी,
चेहरे पर उकेरी गईं दर्द की नई निशानियाँ।

हर साँस में बसती है एक पुरानी गुफ्तगू,
जैसे आत्मा रोती हो, बिना शब्दों की जुबाँ...

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ये सफ़र आख़िरी रहा शायद,
तेरे बिन अब कुछ भी न रहा शायद।

हर मोड़ पर तुझसे मिलते रहे,
पर वो मंज़िल कहीं न मिला शायद।

तेरी आँखों में जो समंदर था,
वो मेरी प्यास को समझ न सका शायद।

मैं साए की तरह चलता गया,
पर तू धूप में ही जला शायद।

लबों पर नाम था तेरा ही मगर,
दिल से तुझको कभी कहा न गया शायद।

अब जो सांसों का क़रार छूटा है,
ये इश्क़ भी अब थमा-थमा सा रहा शायद।

मैं रुका जहाँ, तू चला जहाँ,
हमारा वजूद ही बहक गया शायद।

तो चल, ये लम्हा विदा कर दें,
ये सफ़र भी अब आख़िरी रहा शायद...

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शाम की आँखों में छुपा है रंग-ए-इश्क,
बाँसुरी के सुर में बस्ता है रंग-ए-इश्क।

दिल की गहराई से उठती है पुकार,
हर साँस में बस्ता है रंग-ए-इश्क।

राधा के आँचल में खोया कान्हा सा,
हर पल में समाया है रंग-ए-इश्क।

दूरी भले हो, मन का मिलन सदा,
सपनों में छाया है रंग-ए-इश्क।

आँसुओं की बूंदों में भी मुस्कान है,
जो बयाँ करती है रंग-ए-इश्क...

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दिल की गहराई में खोया एक साया है,
खिड़की से झाँकता सूना आँगन साया है।

सूखे पेड़ की डालों में दबी है चीख,
हर पत्ते का रंग अब तक अधूरा साया है।

नीले लिबास में लिपटी वो खामोशी,
आँखों में समाया एक पुराना साया है।

हवा बयान करे, पर सुन न पाए कानों,
दिल की गहराई में छुपा हुआ साया है।

पहाड़ों की ओट में छुपा सपनों का मेल,
अकेलेपन में भी एक नया साया है...

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हर ज़ख़्म पे मुस्कान सजाने में "माहिर",
हम लोग हैं रंजो़ं को छुपाने में "माहिर"।

तन्हाई की तालीम जो ली दर्द से हमने,
अब शोर भी लगता है भुलाने में "माहिर"।

तू फ़न समझता रहा मेरी ख़ामोशी को,
मैं लफ़्ज़ की चुप में बहाने में "माहिर"।

आईना पूछे कि ये चेहरा किसका है,
हम अक्स को भी अब बहकाने में "माहिर"।

सदियाँ बदल जाएँ मगर यह हुनर बाक़ी,
इक शख़्स था दिल को जलाने में "माहिर"।

वो इश्क़ करता था सलीक़े से मगर,
हम थे जो हर मोड़ भुलाने में "माहिर"...

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दिल में छुपा है एक साया, चेहरा है अनजान,
लाल फूलों की खुशबू से बस्ता है जहान।

आँखों में सवाल, होंठों पर खामोशी का रंग,
हर साँस में गूँजती है एक बेकरार अहसास।

"Mr. King" की तख्ती, मन को ठहरने को कहे,
पर भीतर का तूफान, चुपके से बढ़े कदम।

शाम की परछाईं में, वक़्त रुकता है ठहर,
फूलों की डालियों से टपकता है अधूरा पहर।

कपड़े की सिलवटों में छुपा है दर्द का मेल,
हर शेर में बयान हो, दिल का ये गहरा खेल...

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