मंज़िल की चाह में भटकती हुईं एक मुसाफ़िर हूँ,
जाने मंज़िल कब मिले, तब तक कोशिश करना नहीं छोड़ुगी,
आएगी बहुत बाधाएं और मुश्किलें,
कि आएगी बहुत बाधाएं और मुश्किलें,
ना डरूंगी उनसे डटकर सामना करूँगी,
चाहे झोकना हो आग में खुद को,
कि चाहे झोकना हो आग में खुद को,
उस आग से निखर के आऊंगी और अपने सपनों को ऊड़ान के नए पंख दुंगी,
छोटी-छोटी कोशिश से अपनी दूरी तय करूँगी,
मैं अपने सपनों को जरूर पुरा करूँगी,
मैं अपने सपनों को जरूर पुरा करूँगी।
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