Mountain Soul  
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Joined 31 October 2019


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25 FEB AT 17:31

बादल की रहनुमाई में हवाएँ गाती हैं,
सूरज की किरनों में चुपके से बातें होती हैं।
हर सुबह की नर्म रोशनी में रंग बिखरते हैं,
धरती की चुप्प में अनकही यादें होती हैं।

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16 FEB AT 22:44

चाँद की रोशनी में कुछ लम्हे छिपे हैं,
रातें स्याह हैं, मगर उसकी सूरत में राहत भी है।

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23 DEC 2024 AT 14:43

Beneath the infinite dome, where winds lay their song,
Mountains rise eternal, steadfast, and strong.
In shadows of their ancient spine, we tread,
Seeking the stories their silence has said.

As Frost would ponder, they wear winter’s crown,
Veiled in snow, where time slows down.
Each crevice a sonnet, each peak a hymn,
A saga of stone, untamed and grim.

Like Wordsworth’s heart, they cradle the breeze,
Echoing the murmur of ancestral seas.
Their cliffs are sermons, their streams, a prayer,
In the mountain’s hold, we are weightless, bare.

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22 DEC 2024 AT 17:39

ज़िंदगी के हर मोड़ पर वो मुस्कुराहट छोड़ जाता,
“जॉन” जैसा हो, तो हर दिल को छू जाता।

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21 DEC 2024 AT 22:25

जुस्तजू में तेरी हम खो से गए,
दास्तान-ए-दिल भी अधूरी रह गए।
ग़म-ए-हिज्र ने ऐसे लिपटा हमें,
आंसुओं में सारे अरमां बह गए।

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21 DEC 2024 AT 12:40

रास्ते के संग संग चली एक तनहा सी छाया,
सूरज ढलते ही वो भी हवाओं में गुम हो गई।

पता चला, साथ भी उन्हीं का होता है जो रुकते नहीं।

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20 DEC 2024 AT 22:34

हुस्न-ए-शब, तेरी खामोशी में असर गहरा है,
जैसे हर सांस में कोई ग़म का सफ़र ठहरा है।
चाँद पूछता है मुझसे मेरी तन्हाइयों का हाल,
और सितारे हर आहट पर चौंकते से लगते हैं।

ग़ालिब के लहज़े में मैं शब से ये कहूँ,
तेरे दामन में दिल का हर दर्द छुपा है, सुन..
जो न सुलझ सकी उलझन-ए-जिंदगी,
वो सुलह तेरे सन्नाटों में मिला है, सुन..

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19 DEC 2024 AT 18:26

ज़िंदगी के फलक पे ख्वाबों के चिराग जलते हैं,
चुभन भी हो तो ये दिल फिर मुस्कुरा के चलते हैं।
रात की परतों में छुपे उजाले बुनते हैं,
हर अंधेरा कहता है, कहीं तो सूरज खिलते हैं।

गम की बारिशें आईं तो रंग बिखरने दो,
मिट्टी के हर कतरे को महकने और निखरने दो।
ठोकरों की आवाज़ें भी गीत बन जाएंगी,
बस दिल की धड़कनों को उम्मीदों से भरने दो।

ज़िंदगी ग़ज़ल है, हर शेर नया रंग लाता है,
जो गिरकर उठे, वही तो इसे जी पाता है।
सफर अधूरा सही, पर साज ज़रूरी है,
आसमान से झुकते तारे कहते हैं, "तू ज़रूरी है

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17 DEC 2024 AT 22:44

चाँद भी हैरान मेरी तन्हाइयों से,
रोज़ झाँकता है खिड़की से परछाइयों से।
मैंने पूछा क्या तुझे भी है किसी का इंतज़ार?
वो मुस्कुराया और छुप गया बादलों की रुसवाईयों से।

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16 DEC 2024 AT 20:35

ख़्वाब आते हैं, दरारों से झांकते हुए,
जैसे कोई अपना गिला सुनाते हुए..
नींद को मैंने रंजिशों में लिखा है,
जैसे कोई अधूरे ख्वाबों का इज़हार करते हुए…

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