Motivational✌️ Writer 79   (motivational_writer79✌️)
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Joined 18 June 2020


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Joined 18 June 2020

बीज बोए बिना खेतों में फसल कहां लगती है,
कपोल फूटे बिना कौन सी डाल खिलती है
मंजिल तक पहूंचने में पहले मेहनत लगती है।।

तिनका-तिनका चुनकर चिड़िया घोंसला बुनती है,
बुंद-बुंद मिलकर ही नदियों की धार बनती है
काबिल बनने के लिए पहले मेहनत लगती है।।

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वहम था मेरा मैं बखुबी पढ़ना-लिखना जानता हूं,
कोरे कागज से है जीवन के पन्ने
इन्हें यूं ही ज्यों के त्यों उलटते-पलटते रहता हूं।।
।।शंकरदास।।

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रजनीकर की आभा सोने नहीं देती
तन्हाइयों की चादर ओढ़ा कर
धुंधले ख्यालों के मेघ उमड़ते हैं
भरने लगते हैं जो अतीत के घाव
हरा करने उन्हें हर रोज है आती।।

सनसनाहट सी होती है तन-बदन में
अजीब सी कशमकश मन में जगाती,
विरान सा पड़ा है अरसों से प्रेम आंगन
अंधेरे की खामोशी इसे नित मौन कराती
ना जाने क्यों रात अकेला नहीं रहने देती।।

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14 NOV 2023 AT 13:04

!महादेव!
सांसे मेरी इनमें पहरा तेरा है,
प्रेम की डोर में बंधा
ये रिश्ता बहुत गहरा है....!❤️!

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9 NOV 2023 AT 16:37

जन्मभूमि मेरी प्यारी देवभूमि की बात निराली,
किसकी नज़र लगी जो इसकी रौनक चुरा ली।।

कभी हरे-भरे थे जो खेत-खलिहान,
आज वहीं बंजर नजारा दिख रहा।।
गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं,
पलायन की पीड़ा से उत्तराखंड जुझ रहा।।

युवा अपनी शान-शौकत में यहां से दूर रह रहा,
कण-कण देवभूमि का रोकर उनसे ये कह रहा।।
23 वर्ष का हो चला हूं में तुम्हें तरस नहीं आ रहा,
युवावस्था में ही मैं वृद्धावस्था का ग्रास हो रहा।।

क्या कमी है मुझमें क्यों मुझसे मुंह फेर रहा,
मेरी नहीं सुनता तो ना सुन!
क्या अपने पुरखों का भी तुमको मान नहीं रहा।।
पनपे थे वो इसी देवभूमि में यहीं तेरा वजूद रहा,
जड़ काट के अपनी क्या कौन सा वृक्ष पनप रहा।।

देवभूमि के जनमानस से ये शंकरदास कह रहा,
बचालो अपनी जन्मभूमि को मिलकर,
स्थापना दिवस पर यही गुहार लगा रहा।।

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9 NOV 2023 AT 11:36

अंधकार अपने अहम का भी मिटाना,
इस दिवाली सभ्यता के दीप जलाना।।

किसी के अयन में मधुर सी मुस्कान लाना,
किसी के नयनों में उम्मीद की किरण जगाना।।

किसी की बदहाली को खुशहाल कर आना,
किसी की मजबूरी में सहायक बन जाना।।

किसी की हृदय वेदना को सरगम दे आना,
किसी की निराशा को आशा के दीप दे आना।।

किसी की नाकामी को कामयाब कर आना,
किसी की कमजोरी को मजबूत कर आना।।

मानव हो मानवता की ये मिशाल दे आना,
जग जलाता है यहां पग-पग पर एक-दुजे को,
तुम जगमग ज्योत बन जग रोशन कर आना।।

अंधकार अपने अहम का भी मिटाना,
इस दिवाली सभ्यता के दीप जलाना।।

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11 OCT 2023 AT 23:56

हम तो उस औघड़ के चेले है,
कौन क्या समझता है ये वो जाने।
मान-अपमान,
राग-द्वेष,
छल-कपट
इनकी मुझे परवाह नहीं,
मैं दास उसका वो शंकर मेरा, बाकि सब वो जाने।
।। शंकरदास।।

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5 OCT 2023 AT 17:35

सबकुछ देख लिया मैनें,बस एक बात समझ आती है,
जिंदगी कुछ नहीं, और सबकुछ जिंदगी सिखाती है।।
।। शंकरदास।।

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20 SEP 2023 AT 23:50

चेहरे में चमक व होंठों में ये मुस्कान,
दुनिया की चालों से भले है अनजान।

ऐसा नहीं है की हमें चालें चलनी नहीं आती,
बस अटल इरादें है अपने अटूट हैं अरमान ।।

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20 SEP 2023 AT 23:39

राह मंजिल की इन आंखों में समाई है,
कौन कहता है आपत्ति रोकने आई है ।

जज्बा कायम है हमारा आज भी वही,
छोटी सी उम्र में ये तजुर्बे की कमाई है ।।

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