Motivational✌️ Writer 79   (motivational_writer79✌️)
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Joined 18 June 2020


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चला था कुछ पल सुकून के बिताने
यहां कब क्या हो जाए ये कौन जाने
वक्त-बेवक्त एक उम्मीद सी जगती है
जाने कब आशा निराशा में बदलती है
जीवन का पहिया हमेशा घूमता रहता है
भले गाडी चले या ना चले घूमना पडता है
हताश-निराश, थका-हारा जब कोई आता है
निरश सा ये जीवन उसे बहुत खल जाता है
जब समझ नहीं पाता कोई उसकी भावनाओं को
वो खेल खेल में ही जीवन का खेल खत्म कर जाता है।
""शंकरदास""
🙏!!महादेव!! 🙏

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काले से उत्तम रंग नहीं
सीमा से उत्तम जंग नहीं
प्रेम से उत्तम प्रसंग नहीं
आनंद से उत्तम उमंग नहीं

हर्ष से उत्तम पल नहीं
काल से उत्तम बल नहीं
सरिता से उत्तम जल नहीं
संयम से उत्तम हल नहीं

।।शंकरदास।।

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30 SEP 2024 AT 20:37

मुठ्ठी में बंधी मैं वक्त की रेत नहीं जो सरक जाऊंगा,
वक्त लगेगा लेकिन एक दिन तो तुझमे मिल जाऊंगा,

भेजा है तूने भरोसा है जरूर कुछ तो कर जाऊंगा,
पिछला बकाया सारा उधार मैं अब चूका जाऊंगा,

ना जाने कितनी बार आया हूं मैं इस पंचायत में,
लेकिन अबकी बार न्याय कर कर ही जाऊंगा,

सभा बनाकर बैठे है ये पंच, चौरासी ने घेरा है,
चौदवीं मंजिल में घर है मेरा, बडा लम्बा फेरा है,

थकुंगा-गिरूंगा-उठुंगा-चलूंगा अब नहीं भटकुंगा,
अब जान गया हूं मैं तुझको तुझमे ही रम जाऊंगा।

!!शंकरदास!!

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30 SEP 2024 AT 20:37

मुठ्ठी में बंधी मैं वक्त की रेत नहीं जो सरक जाऊंगा,
वक्त लगेगा लेकिन एक दिन तो तुझमे मिल जाऊंगा,

भेजा है तूने भरोसा है जरूर कुछ तो कर जाऊंगा,
पिछला बकाया सारा उधार मैं अब चूका जाऊंगा,

ना जाने कितनी बार आया हूं मैं इस पंचायत में,
लेकिन अबकी बार न्याय कर कर ही जाऊंगा,

सभा बनाकर बैठे है ये पंच, चौरासी ने घेरा है,
चौदवीं मंजिल में घर है मेरा, बडा लम्बा फेरा है,

थकुंगा-गिरूंगा-उठुंगा-चलूंगा अब नहीं भटकुंगा,
अब जान गया हूं मैं तुझको तुझमे ही रम जाऊंगा।

!!शंकरदास!!

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30 SEP 2024 AT 20:13

मुठ्ठी में बंधी मैं वक्त की रेत नहीं जो सरक जाऊंगा,
वक्त लगेगा लेकिन एक दिन तो तुझमे मिल जाऊंगा,

भेजा है तूने भरोसा है जरूर कुछ तो कर जाऊंगा,
पिछला बकाया सारा उधार मैं अब चूका जाऊंगा,

ना जाने कितनी बार आया हूं मैं इस पंचायत में,
लेकिन अबकी बार न्याय कर कर ही जाऊंगा,

सभा बनाकर बैठे है ये पंच, चौरासी ने घेरा है,
चौदवीं मंजिल में घर है मेरा, बडा लम्बा फेरा है,

थकुंगा-गिरूंगा-उठुंगा-चलूंगा अब नहीं भटकुंगा,
अब जान गया हूं मैं तुझको तुझमे ही रम जाऊंगा।

!!शंकरदास!!

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18 SEP 2024 AT 15:19

अपने दिल की सूनो
तुम-तुम ही तो हो
रूको मत चलते रहो
बस सही रास्ता चूनो!!

किसी की मुस्कुराहट बनो,
किसी की गुनगूनाहट बनो,
तुम बेसहारों की ताकत बनो
बस सही रास्ता चूनो!!

जगमग होकर जग में चमको,
सम्मान से चमकाओ खुद को,
कोयले की खान में हीरा तुम हो,
बस सही रास्ता चूनो!! !!शंकरदास!!

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15 SEP 2024 AT 0:41

जीवन के कशमकश में खोये है हम
है बोझ कांधों पर जिम्मेदारियों का,
अपने शौकों को नजरंदाज करते हैं हम।।

जन्म लेने की खुशी मनायी जाती हमारी,
जिम्मेदारी निभाने के लिए ही जन्में है हम,
हम ही जानते हैं जनाब हाल अपना
कैसे कैसे दौर से होकर गुजरे हैं हम,
चेहरे पर मुस्कुराहट लिए फिरते हैं
तन्हां दिल में पनपते हैं हजारों गम,
आंशू बहते नहीं हमारे किसी के आगे
कहें तो कहें कैसे आखिर लड़के हैं हम,
छोटी-छोटी बातों में उलझे हैं हम।।
!! शंकरदास!!

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14 SEP 2024 AT 3:20

कोई पुछे तो बताऊं
ना जाने क्यों है घुटन सी
संघर्ष की अग्नि में जलाकर
ज्वाला प्रबल हुई लक्ष्य की।।

पुस्तकें होनी थी जिन हाथों में
बचपने में ही वो छीन ली थी,
पेट की आग बुझाने के लिए पूर्ण कविता
आखिर दो रोटी जो कमानी थी।। अनुशीर्षक में पढ़ें

दर-दर भटकाया भाग्य में मेरे
ढंग से उभरी ना अभी जवानी थी,
कभी ढोया बोझ इन कांधों ने
तो कभी दफ्तरों कि सफाई की।।

कभी तो बन गया मैं अखबार वाला
तो कभी घरों में राशन कि भरपाई की,
कभी पहूंचाया दुध पूरे नगर के घरों में
तो कभी कपड़े बैचने कि अदाकारी की।।

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12 SEP 2024 AT 15:51


अजीब सा शोरगुल का है ये युग
कौन, कहा, कब, कैसे गया रूक
हर जगह फरेब बड़ा सच गया छुप
देखो आ गया अब ये घोर कलयुग।।

छली-कपटी खुब तरक्की कर रहे
झुठे-मक्कारों के भरे पड़े हैं संदूक
शराफत में रहने वाले देखते एकटुक
देखो आ गया अब ये घोर कलयुग।।

अत्याचारी दुर्व्यवहारी है अब खुश
सत्यवादी दयावान सब बैठें हैं चुप
ना जाने वक्त ने ये कैसा बदला रूख
देखो आ गया अब ये घोर कलयुग।।

।। शंकरदास।।

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19 JUL 2024 AT 10:01

मत सोचो की तुम हारे हो, जग के लिए भले नकारे हो।
मन का अंधियारा मिट रहा, उम्मीद का दिनकर उग रहा।

आत्मबल तुम्हारा तुमसे कह रहा,तू क्यों व्यर्थ की चिंता में जल रहा ।
स्वयं ही ना स्वयं का अपमान करा अंतर्मन को स्वयं की पहचान करा।

लक्ष्य तेरा न तुझसे ज्यादा दूर खड़ा, उठ-जाग तू! साहस के अब पग बड़ा।
हो कितने घने ये संकट के बादल, तू बनकर काल बस इनपर मंडरा ।

ना निराश करो, जीवन को, जागो! स्वीकार करो खुद को।
मत सोचो की तुम हारे हो, जग के लिए भले नकारे हो।।

।। शंकरदास।।🖍️

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