मेरे हालात मेरे कर्मो की कमाई थी।
अपनों ने तो मुझे हँसाने की कसम खाई थी।।-
M. 9636222539
मैं हिन्द को स्वर्ग बनाने का अरमान लिखता हूँ।
हर एक पन... read more
बुद्ध से सीखा है हमने
अतीत की पीड़ा का राज,
युद्ध में देखा है हमने
भविष्य के सपनों का नाश,
काम क्रोध व पीड़ा का
संचार, संसार में सच्चा है।
दीदी याद दिला रही है,
वर्तमान में ज़ीना अच्छा है।।-
उदास हो कर भी जिंदा आस रखे,
हार के बावजूद जीत का विश्वास रखे,
प्रकृति के प्राणों को मोड़ा नहीं जा सकता
पहाड़ सा इरादा है, तोड़ा नहीं जा सकता।।
बेगुनाही की सजा अच्छी नहीं होती,
हर प्रेम कहानी सच्ची नहीं होती होती,
आँसुओं से भी सुकून की
आस ना रहे,
बहुत कठीन होता है जीना,
जब रब पर भी विश्वारा ना रहे।।
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मैंने,
बस इतना जाना है।
संसार के सार से,
अनुभव के विस्तार से।
अपनों के अनुराग से,
पीड़ा की आग से।।
जीना है तो जलना होगा,
अपने में ही खिलना होगा।
जगत् में न कोई अपना है,
सुख एक झूठा सपना है।।
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समझ तब आती है -
जब पूर्णता पा जाये पीड़ा
जब विचार हो विश्वास पर,
अपने आपको कर दे मुक्त
महाजाल के जंजाल से।।
समाज, परिवार व परंपरा
बंधन का रूप विकराल है
प्रेम, प्रकृति व प्रश्न ही
सत्य का संसार है।।
-
जब बचपन को मारा जाता है
जब अपनों से हारा जाता है
जब घूटन के साथ जीना पड़े
जहर का घूँट तब पीना पड़े
जीने का ना कोई सार हो
चारों ओर हार ही हार हो
तब स्वप्न डराने लगते हैं
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जीवन के सुख और संघर्ष को।
वक्त के दुःख और दर्द को।
लोभ से कमाये पद को।
अपना समझ बैठे थे हम।।
समय के साथ छूटे अपनो को।
मेहनत के बावज़ूद टूटे सपनों को।
विचार, विश्वास और वक्त को।
अपना समझ बैठे थे हम।।
घर परिवार और समाज को।
गद्दारी से प्राप्त राज को।
पीड़ा व संताप को।
अपना समझ बैठे थे हम।।
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जीवन के सुख और संघर्ष को।
वक्त के दुःख और दर्द को।
लोभ से कमाये पद को।
अपना समझ बैठे थे हम।।
समय के साथ छूटे अपनो को।
मेहनत के बावज़ूद टूटे सपनों को।
विचार, विश्वास और वक्त को।
अपना समझ बैठे थे हम।।
घर परिवार और समाज को।
गद्दारी से प्राप्त राज को।
पीड़ा व संताप को।
अपना समझ बैठे थे हम।।
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मैं भूखे बच्चों के लिए रोटी की आस लिखता हूँ।
प्यास से कांपते होंठों की सांस लिखता हूँ।
चाह नहीं मुझे मोहब्बत के गीत लिखने की।
माँ की दुआ से बच्चों के भविष्य का विश्वास लिखता हूँ।।-
दुनिया की आधी आबादी, भूखी ही मर जाती है।
हक मांगने पर यहा बस, लाठी भांजी जाती है।
राजनीति हाथ धर्म बिक गया, सत्य कहाँ ले लाऊँ मैं।
राम कृष्ण तड़फ़ रहे, भजन किसे सुनाऊं मैं।।-