कभी यूं ही, खुश हो लेती हूं,
बस! वैसे ही दिल भर आता है,
बाक़ी है तू मुझ में कहीं।
पल, अब भी ख़्वाब से लगते हैं,
बेहद काम और मसरूफीयत के बीच,
तेरे लफ़्ज़ों की झलकियां दिखती है,
बाक़ी है तू मुझ में, यार!
अब जिंदगी दिल नहीं तोडती,
ख़्वाबों को रफ्तार मील गईं,
बस! मैं ही काफ़ी हूं मेरे लिए,
क्यों कि,
अब भी बाक़ी है तू मुझ में।
तूझसे अलग हो ने का डर
कहां से लाऊं?
इस रूह का हीस्सा है तू यार,
हमेशा रहेगा तू मुझ में।
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