रूठ जाओ तुम, और हम मना ले तुम्हें
हर बात को निगाहों से, समझा ले तुम्हें
वक्त की बर्बादी कर, इस वक्त को बदलें
इस कदर अपनी किस्मत, आओ बना ले तुम्हें
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Philosophical yet realistic
Writing the heart out
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दफ़्तर में दिल अब, लगता नही
आशिकी का हम ने, काम किया है
पलट के इक रोज, देख लो साहब
तेरा लिए खुद को, बदनाम किया है
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मंजिलें तो वही है, जहां दिल जोर से धड़के
हर रिश्ते को नाम देना, कोई जरूरी तो नहीं
तेरी खुशियां बहुत बड़ी है, इस झूठे जमाने से
हर किसी को सफाई देना, मजबूरी तो नही
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तू एक नज़्म है, तुझे गुनगुनाता हूं मैं
बन के आशिक़ तेरा, बड़ा, इतराता हूं मैं
तुझे क्या मालूम, क्या शख्सियत है तेरी
कि तेरा जिक्र जो उठे, तो बहक जाता हूं मैं
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बेबस नहीं, बेकरार होना चाहिए
मोहल्लों में शोर हो, ऐसा प्यार होना चाहिए
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हकीकतें ज़माने की, अक्सर बारिशों ने दिखाई है
कहीं से चेहरे के रंग, तो कहीं से धूल उतर आई है
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रिश्तों के नाम, अगर टटोलते जाओगे
तो दिलों के धागे, तुम खोलते जाओगे
जो दुश्मन ग़ालिब, तेरी ही खुशियों के
उसी जमाने की भाषा, बस बोलते जाओगे
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गर जिंदा है, तो जीने का, इंकलाब रख
बातों में गर्मी और, आंखों में ख्वाब रख
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हर शख्स में ढूंढ लेता हूं, कुछ नेकी
बुराई तो ग़ालिब, मुझमें भी बहुत है
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