जिंदगी चल रही है वक्त ठहरा हुआ है,
ख़ामोश है ख्वाहिशें असर गहरा हुआ है,
रंज सहना पड़ रहा है कुछ फैसलों का,
खुद के वजूद पर खुद का पहरा हुआ है,-
उम्मीद प्रेरणा जिंदगी दर्शन ✍️
जयपुर राज... read more
एक शौक अब यह भी रखना होगा
हवा पानी और पेड़ों को बचाना होगा
अमूल्य सौगातों की तबाही रोक कर
प्रकृति का अहसान अदा करना होगा-
जो जिस्मों को समझें,
रुह को छू नहीं सकता।
वो कुछ भी हो मगर!
प्यार हो नहीं सकता।।
जो बचपन बीता आंगन,
बिन दीवारें रह नहीं सकता।
वो कुछ भी हो मगर!
घर हो नहीं सकता।।
जो छप्पन भोग लेकर के,
भुख मिटा नहीं सकता।
वो कुछ भी हो मगर!
खुदा हो नहीं सकता।।
जो अंबर निरखे आंखों से,
जमीं को देख नहीं सकता।
वो कुछ भी हो मगर!
मंजिल पा नहीं सकता।।
जो नयनन नीर देखकर,
पीर को समझ नहीं सकता।
वो कुछ भी हो मगर!
इंसान हो नहीं सकता।।-
स्थिर हालातों को कब तक देखोगे,
इस किस्मत को कब तक कोसोगे,
उठो जागो अकर्मण्यता को करो धराशाही,
अब तुम कर्म युद्ध को कब तक रोकोगे,
इरादों को दृढ़ कर बढ़ने का संकल्प धरो,
कर निर्णय निश्चय प्रखर इच्छाओं को पूर्ण करो,
यूं सहते सहते सुनते सुनते काम नहीं चलने वाला,
हो तीक्ष्ण तेज उग्र प्रचंड ऐसी एक हुंकार भरो,
राह कठिन है चलना होगा अंत तक लड़ना होगा,
पराकाष्ठा तक जलना होगा कंकड़ से कनक बनना होगा,
आंख का हर एक आंसु मोती ना बन जाए तो कहना,
लेकर अटल अडिग प्रतिज्ञा सफ़र शुरू करना होगा,-
वो मेरी आंखों में बसी हुई है,
में उसकी आंखों में बसा हुआ हूं,
वो मेरी आंखों से प्यार करती है,
में उसकी आंखों से प्यार करता हूं,
कितने अल्हड़ है हम दोनों?
वो उससे प्यार करती है!
में मुझसे प्यार करता हूं!!-
मुझे नसीहतें देने वालों सावधान रहना!
मेरा एक फ़ैसला तुम्हें बैचेन कर देगा!!-
आशिकों की आंखें नहीं खुल रही ख्यालों से!
हमने नींद गिरवी रख दी है सपनों के लिए!!-
घोर अंधेरे में नन्ही काली आंखों से
टिमटिमाते तारे देखना है उम्मीद..
मन के दरिया में कागज की बनी
रंगीन नांव का चलना है उम्मीद..
सरहदों के पार से चिट्ठी का
पते पर आ जाना है उम्मीद..
एक बीज में वृक्ष का पलना,
क्यारी में फूल का खिलना,
मृत घास प्रस्फुटित होना,
पपीहे की प्यास बुझना,
एक बच्चे का चलना,
मोती का मिलना,
सांसों का आना,
सोकर उठना,
लिखना,
है उम्मीद..
रख उम्मीद..-
रोज सिखाती है रोज पढ़ाती है!
जिंदगी तेरा कोर्स कब पूरा होगा?
📓Happy teachers day📓-
सौ रूपए की चॉकलेट कुछ मीठा हो जाए!
खाएं तो मर जाए! ना खाएं तो कहां जाएं!
एक की दस और दस की सौ आती थी!
बचपन वाली टॉफी! लाएं तो कहां से लाएं?
कितना अच्छा बचपन था सस्ते में,
दो चार किताबें ही होती थी बस्ते में,
लाइब्रेरी के निशान पड़ गए पीठ पर,
आजकल के बच्चे जिएं या मर जाएं!
यह दौर कितना उलझ गया है दामों में,
भाग रहे हैं क्षणिक सुख के कामों में,
शायद रास्ते भटक गए या भूल गए!
घर-ऑफिस-घर जाएं तो कहां जाएं?
कभी फुर्सत मिले तो रुक जाना,
हंसना! मुस्कुराना! खिलखिलाना!
बड़ा बुजुर्ग बच्चा बन जाना,
सफर की सफलता तो मौत ही है,
सफलता से पहले मत मर जाना!-