चल रहा हूं मैं अरसो से और बरसों अभी बाकी हैं,
मेरे सफर में पड़ने वाले कई मकाम अभी बाकी हैं,
देखा है सूरज की गर्मी से पिघलता वो गर्भ मैने,
देखा है कुछ नही से जन्मा ये सब मैने,
मैने सागर से पर्वत होते देखा है,
मैने पहाड़ों को पत्थर होते भी देखा है,
देखा है मैने जनपदों का बनना और उजड़ना हर दौर में,
देखा है पानी की जिदंगी को हर तौर में,
मैने इंसानो की किलकारी को ललकार होते देखा है,
मैने जंगलों को बदल कर बाज़ार होते देखा है,
मै किसी तप जप से कभी बंधा नही,
मैं किसी सुर असुर का भी सगा नही,
मैं वरदानों श्रापों के चक्कर में कभी पड़ा ही नही,
मै जंग कभी किसी ओर से लड़ा भी नही,
मैं भूत हूं मै आज हूं और मैं ही कल भी हूं,
आकाश हूं, नीर हूं, अग्नि और थल भी हूं,
मै हर जगह हूं मौजूद और कहीं भी नही,
मै गलत नहीं हूं मगर सही भी नही,
मै आदि से हूं अंत तक,
मै अणु से हूं अनंत तक,
मै निश्छल अविनाशी हूं, मैं निर्भय हूं,
मै और कोई नहीं , मैं समय हूं।।
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