Monish Jaiswal   (@_M.j ★)
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I m so simple
Joined 15 November 2018


I m so simple
Joined 15 November 2018
5 JAN AT 15:11

चारों तरफ सफेद कुहासा, जैसे स्वर्ग में मेरा आशियाना है।
भीनी-भीनी वड़ों की खुशबू, पकवानों का दुर्लभ शामियाना है।
अदरक-चाय की मादक चुस्की उसपर मां-बाप का खुलकर मुस्कुराना है।
आज लिखने को कुछ भी नहीं है, बस दिल थोड़ा शायराना है।

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26 AUG 2024 AT 14:37

फिर जमा रहा हूं शब्द पुराने, मन में भाव नया लेकर,
मेरी मन-कलियां खिल उठती, बस तुझको अपना कहकर।
मैं तेरे रूप का कायल देवी, तेरी सुंदरता क्या लिख दूं ?
तेरी बिंदी पर मैं न्यौछावर, खुश हूं खुदको तेरा कहकर।
मैं दिशाहीन, मन चंचल था, तूने आकर ठहराव दिया,
अब अपने पथ पर अविचल हूं, तेरे मन के भीतर रहकर।

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29 JUN 2024 AT 20:06

बड़ी कश्मकश में है ज़ेहन आजकल,
आगे चलूंगा या रुकूंगा कुछ कह नहीं सकता।
और बड़ी जोर से काटता है भीड़ में अकेलापन,
कौन कहता बरगद वृक्ष ढह नहीं सकता।

बड़ी चालाकी से छुपा लेता हूं अंधेरे गलियारे,
दिल के हालात क्या है, कुछ कह नहीं सकता।
शायद यही इंतहा है मेरी सहनशीलता की,
अब मैं इससे ज्यादा और सह नहीं सकता।

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10 JUN 2024 AT 20:50

आज बेटा अरसे बाद अपने घर जारा है,
खुशी तो देखो कैसे फूला नी समारा है,
साल भर की सेविंग्स के गिफ्ट लेके आरा है,
और मम्मी के लिए दो कंगन भी बनवारा है।

लेकिन
हर कोई पूछे बेटा कितना कमारा है,
हर कोई सोचे बेटा ऐश करके आरा है,
पीछे वाली आंटी बोली लड़की घुमारा है,
आंखें कितनी लाल है, ये दारू पीके आरा है।

पर
किसी ने ना पूछा बेटा कहां से तू आरा है?
कोई भी ना पूछे बेटा कैसा खाना खारा है?
बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों में सांस भी ले पारा है?
तबियत तो ठीक है ना, ठीक से सो पारा है?

और
बेटा सब सुनता हुआ बस चले जारा है,
दूर खड़ी मां दिखी, देखो कैसे मुस्कुरारा है,
पिताजी की आंखों में वो गर्व देख पारा है,
आखिर आज बेटा अरसे बाद घर आरा है।

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27 JAN 2024 AT 23:55

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24 DEC 2023 AT 11:51

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3 NOV 2023 AT 12:02

संस्कार थोड़े धुंधले हैं, सिर्फ ईर्ष्या शेष है,
गरीबी छुआछूत है और धर्म-पैसा एक है।
हम कारखानी मशीनों के इंसानी वेश हैं,
मैं थोड़ा फिक्रमंद हूं, यह तरक्की की रेस है।

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19 OCT 2023 AT 16:08

हमें तो अपनी गलियों में सादगी लगती थी,
ये फ्लाईओवर गला भींचने लगा है,
और जब से हो चले हैं निकट नीच हम,
शहरों में जीने का सहारा मिलने लगा है।

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23 SEP 2023 AT 21:45

मैंने चुल्लू भर जलालत में डूब कर जाना,
कि बेहद की हद भी बेहद जरूरी है।

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12 SEP 2023 AT 14:11

भीड़ में अकेली झांकती उन आखों से पूछो
कि वक्त गुजरने में कितना वक्त लगता है।

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