Monis Rehman  
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Joined 15 June 2017


Joined 15 June 2017
31 AUG 2017 AT 8:44

यहाँ लिबास की कीमत है आदमी की नही !
मुझे गिलास बड़ा दे शराब कम कर दे !!

संवार नोक फ़लक़ आबरू में ख़म कर दे !
गिरे पड़े हुए लफ़्ज़ों को मोहतरम कर दे !!

गुरूर उसपे बहुत सजता है मगर कह दो !
इसी में उसका भला है गुरूर कम कर दे !!

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28 AUG 2017 AT 21:16

ये बहारें , ये महक , ये चांदनी तौबा !
ऐसे मौसम में तेरी याद बहुत आती है !!
मोनिस

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22 AUG 2017 AT 8:48

मोहब्बत हो गयी है उनको शायद !
इबादत में खलल पड़ने लगा है !!

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20 AUG 2017 AT 17:17

सुख़नवर-ए-शायरी

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15 AUG 2017 AT 11:56

सियासत की जो जंजीरे है उन्हें तोड़ कर अब तो !
तुझे तो मुल्क अभी और भी आज़ाद होना है !!
मोनिस

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11 AUG 2017 AT 20:01

मेरी नेकियों का क्या होगा !
मेरे शहर में दरिया नही हैं !!

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11 AUG 2017 AT 10:41

तुम्हारा नाम होंटो पर तिलावत से ज़रा कम है !
मोहब्बत से ज़्यादा है इबादत से ज़रा कम है !!

यहाँ जल्लाद भी क़ातिल भी मुंसिफ भी गवाही भी !
जिसे हम घर समझते थे अदालत से ज़रा काम है !!

मेरी दीवार पर कितने कैलेंडर हो गए बुढ़े !
तेरे आने का वादा भी क़यामत से ज़रा कम है !!

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8 AUG 2017 AT 22:02

वो वक़्त तुमको बताएगा !
हम कितने नायाब थे !!

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7 AUG 2017 AT 9:19

चली आती हैं अब तो हर कहीं बाज़ार की राखी !
सुनहरी सब्ज़ रेशम ज़र्द और गुलनार की राखी !!

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6 AUG 2017 AT 0:23

हम जी रहें हैं कोई तमाशा किये बगैर !
तेरे बगैर ! तेरी तमन्ना किये बगैर !!

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