उसके क़दम बढ़ गए नई मंजिल की आस में,
हम बिन कुछ कहे ,इंतजार में, रहे वहीं खड़े,
दिल को हर तरह से समझाया लेकिन,
भर आई नादान आंखे और आंसू बोल पड़े।-
गुलाब के फूलों सी ,
महकती है हर नज़्म तेरी,
तुमको लफ्ज़ दर लफ्ज़ पढ़ना,
बन गई है अब आदत मेरी।-
एक एक फ़ूल को ,
गुलदस्ते में हमने,
सलीके से सजाया है,
अब चलो बता भी दो,
क्या तुमको ये पसंद आया है ।-
ये फ़ूल और इनकी खुशबू,
आज भी पसंद है हमें
क्योंकि कभी, ये हद से
ज्यादा पसंद थे तुम्हें।
तुम बदले,तुम्हारी पसंद
भी बदल गई,
पर हमारे मन में इनकी खुशबू,
सदा सदा को रच बस गई।-
दुआ है यही दिल से,
साथ अपना यूं ही सदा बना रहे,
बिन लिखे मैं न रहूं,
बिन पढ़े तू न रहे।-
ख़ुशी हो या ग़म, हर भाव का है, अपना अलग रंग,
उन विविध रंगों से शब्दों को भिगोना
हमने योर कोट पर लिखते लिखते सीखा।
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सुकून के हों पल या फिर ग़मों की बरसात हो,
ख्वाहिश है बस इतनी तू हर पल मेरे साथ हो।
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घिरे हुए थे फ़ूल शूल से,
पर हम न भयभीत हुए,
पुष्प तोड़ कर माला गूंधी,
स्वीकार करो ये भेंट प्रिये।-
जादू तुम्हारी बातों का,
कुछ इस तरह से छाया है,
जिधर भी हमारी नज़रे गई हैं,
हर तरफ़ बस तुम्हें ही पाया है।-