monika kanaujiya   (Mk)
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Joined 30 July 2018


Joined 30 July 2018
31 AUG AT 23:11

उसके क़दम बढ़ गए नई मंजिल की आस में,
हम बिन कुछ कहे ,इंतजार में, रहे वहीं खड़े,
दिल को हर तरह से समझाया लेकिन,
भर आई नादान आंखे और आंसू बोल पड़े।

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31 AUG AT 22:51

गुलाब के फूलों सी ,
महकती है हर नज़्म तेरी,
तुमको लफ्ज़ दर लफ्ज़ पढ़ना,
बन गई है अब आदत मेरी।

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30 AUG AT 23:10

एक एक फ़ूल को ,
गुलदस्ते में हमने,
सलीके से सजाया है,
अब चलो बता भी दो,
क्या तुमको ये पसंद आया है ।

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30 AUG AT 0:09

ये फ़ूल और इनकी खुशबू,
आज भी पसंद है हमें
क्योंकि कभी, ये हद से
ज्यादा पसंद थे तुम्हें।
तुम बदले,तुम्हारी पसंद
भी बदल गई,
पर हमारे मन में इनकी खुशबू,
सदा सदा को रच बस गई।

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29 AUG AT 0:00

रंजिश तो निभाते हम भी,
गर इश्क़ मेरा झूठा होता।

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28 AUG AT 23:57

दुआ है यही दिल से,
साथ अपना यूं ही सदा बना रहे,
बिन लिखे मैं न रहूं,
बिन पढ़े तू न रहे।

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28 AUG AT 23:54

ख़ुशी हो या ग़म, हर भाव का है, अपना अलग रंग,
उन विविध रंगों से शब्दों को भिगोना
हमने योर कोट पर लिखते लिखते सीखा।

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25 AUG AT 23:03

सुकून के हों पल या फिर ग़मों की बरसात हो,
ख्वाहिश है बस इतनी तू हर पल मेरे साथ हो।

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25 AUG AT 22:51

घिरे हुए थे फ़ूल शूल से,
पर हम न भयभीत हुए,
पुष्प तोड़ कर माला गूंधी,
स्वीकार करो ये भेंट प्रिये।

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23 AUG AT 23:58

जादू तुम्हारी बातों का,
कुछ इस तरह से छाया है,
जिधर भी हमारी नज़रे गई हैं,
हर तरफ़ बस तुम्हें ही पाया है।

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